धरती का उद्धार करने को होता है भगवान का अवतार : जगद्गुरु स्वामी रामानुजाचार्य

देवरिया (राष्ट्र की परम्परा)। भागवत भक्ति वाटिका तिरुपति बालाजी मंदिर, कसया रोड देवरिया में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में प्रख्यात कथावाचक जगद्गुरू स्वामी रामानुजाचार्य ने कथा के तीसरे दिन बुधवार को कहा कि जब-जब धरती पर संकट आया है तब-तब भगवान इसका उद्धार करने के लिए अवतार लेते हैं।

स्वामी रामानुजाचार्य ने कहा कि अनादि भगवान नारायण की नाभी कमल से ब्रह्मा का प्रदुर्भाव हुआ। चतुर्मुखी ब्रह्मा के चार मानसपुत्र सनफ, संनदन, सनात व सनत कुमार थे। वे ब्रह्मचारी व तपस्वी हुए। ब्रह्माजी के कहने पर चारों ने गृहस्थाश्रम अपनाकर वंश वृद्धि की बात नहीं मानी। क्रोथावस्था में ब्रह्मा जी के भौंह से एक बालक की सृष्टि हुई एवं रुदन के कारण नाम रुद्र रखा और उससे सृष्टि को आगे बढ़ाने को कहा गया। रुद्र देवता को उनके रहने का स्थान कैलास एवं पत्‍ि‌नयों का नाम भवानी, काली, सती आदि बताया गया। महादेव ने बात मान ली और सृष्टि के क्रम में भूत प्रेत, लूले लंगड़े, काले कलूटे आदि की सृष्टि शुरू कर ली।
ब्रह्माजी ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया और कैलास पर तप करने को कहा। अब वह स्थल कैलास मान सरोवर में है। स्वामीजी ने कहा कि सृष्टि के क्रम में कंदर्प, कश्यप, अत्रि, ऋषि आदि नारद के साथ धर्म और अधर्म को भी पैदा किया। स्वामीजी ने बताया कि ब्रह्माजी ने अपने शरीर त्याग कर सरस्वती को प्रकट किया और पत्‍‌नी के रूप में स्वीकार किया पर देवताओं को यह मंजूर नहीं था। शंकर ने ब्रह्माजी के पांच सिरों को काट दिया। तब उन्हें श्राप मिला कि सिर उनके हाथ में अटक जायेंगे और उससे भीक्षा मागेंगे। ऐसा कर जब बद्रीनारायण धाम पहुंचोगे तो इस श्राप से मुक्ति मिलेगी। ब्रद्रीनाथ में शंकर जी के हाथ से ब्राह्मा के सिर हाथ से छूटते हैं और जमीन पर गिरता है वह स्थान ब्रह्मकपाली कहलाता है।

rkpnews@somnath

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