लिपुलेख-कलापानी विवाद और अयोध्या के राम जन्मस्थल पर बयान — ओली का कहना है कि उनकी पॉलिसी के कारण ही कर दिया गया इस्तीफ़ा
देवरिया (राष्ट्र की परम्परा डेस्क)पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने हाल ही में भारत को अपनी सत्ता खोने की ज़िम्मेदार ठहराया है। ओली के अनुसार, भारत के साथ सीमा विवादों और धार्मिक-ऐतिहासिक बयानों ने उनके विरोधियों को राजनीतिक हथियार दिए, जिससे उनकी सत्ता कमजोर हुई।
विवादित बयान और आरोप
ओली ने कहा है कि लिपुलेख-कलापानी-लिम्पियाधुरा क्षेत्र को लेकर भारत के धरातलीय दावों को स्वीकार न करना उनकी बड़ी भूल नहीं बल्कि देशभक्ति की नीति थी। उनके मुताबिक, भारत की इस नीति का समर्थन न करने से उन्हें राजनीतिक दबाव झेलنا पड़ा, जिसकी वजह से उनकी सत्ता जाएगी।
इसके अलावा, उन्होंने अयोध्या-भगवान राम जन्मभूमि से जुड़ी घटनाओं और भारत में धर्म-इतिहास के बयानों को लेकर भारत की भूमिका पर सवाल उठाए हैं। उनका दावा है कि उन्होंने भारत की “संस्कृति-विचारशैली” के अनुसार काम नहीं किया और इसी वजह से उन पर आरोप लगने लगे।
ओली का विश्लेषण: उन्होंने क्या कहा
ओली ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि अगर उन्होंने ये विवादित मुद्दे नहीं उठाए होते, तो आज भी वे पद पर बने रहते। उनका मानना है कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों ने भारत के खिलाफ उनकी ‘भारत-विरोधी रुख’ को अपने फायदे के लिए प्रयोग किया।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि वर्तमान समय में भी भारत पर आरोप लगाना सरल रास्ता है, जबकि असली मुद्दे (उनके बयानों, राजनीतिक फैसलों, लोचता की कमी इत्यादि) आगे नहीं बढ़े गए।
राजनीतिक परिवेश और प्रतिक्रिया
ओली का इस्तीफ़ा गन ज़ेड (Gen Z) आंदोलन और देश में बढ़ते प्रदर्शनों के बीच हुआ, where भारी भीड़ ने सरकारी नीतियों और भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर आवाज़ उठाई।
Oli की भारत नीति को लेकर नेपाल के कुछ राजनेताओं और जनता के बीच मतभेद हैं: कुछ लोगों का कहना है कि वो अपने भाषणों से नेपाल-भारत संबंधों को अनावश्यक तनाव में ला रहे थे।
भारत की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, जो ये बताए कि भारत इन आरोपों को कैसे देखता है। हालांकि, मीडिया विश्लेषकों का कहना है कि ये आरोप ओली की राजनीतिक रणनीति का हिस्सा हो सकते हैं — विरोधियों से ध्यान हटा कर जनता की नाराज़गी को भारत की ओर मोड़ने का प्रयास।
केपी शर्मा ओली के बयानों से स्पष्ट है कि वे अपनी राजनीतिक अस्थिरता और सत्ता चली जाने को भारत-से जुड़े विवादों से जोड़ रहे हैं। हालांकि, आलोचक कहते हैं कि सिर्फ आरोप लगाना पर्याप्त नहीं, बल्कि राजनीतिक फैसलों, जनता की अपेक्षाओं और आचरण की ज़िम्मेदारी भी उन्हें लेनी चाहिए।
यह देखना रोचक होगा कि भविष्य में नेपाल-भारत संबंध किस दिशा में जाएंगे, और ओली या उनकी पार्टी इस बहस को किस तरह आगे बढ़ाएगी।
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