अमरेंद्र पाण्डेय ने जब कहा भतीजा के साथ लौटूंगा गाँव बन गया मिशाल
“एक रिश्ता, जो राजनीति से ऊपर है – समाज के लिए मिसाल बने प्यार और कर्तव्य का यह अनमोल उदाहरण”
वेद प्रकाश तिवारी छात्र नेता के सभार से
आज के दौर में जब रिश्ते स्वार्थ, राजनीति और सामाजिक दिखावे के बोझ तले दबते जा रहे हैं, वहीं कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं जो मानवता, संवेदना और निस्वार्थ प्रेम की सच्ची तस्वीर समाज के सामने पेश करती हैं। बिहार की राजनीति से जुड़ी एक ऐसी ही सच्ची और भावनात्मक घटना आज पूरे समाज के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गई है। यह कोई साधारण घटना नहीं, बल्कि एक ऐसे रिश्ते की कहानी है, जो सत्ता, पद और प्रभुत्व से कहीं ऊपर है।
बीते 6 नवंबर को बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान आम लोग जहां मतदान में व्यस्त थे, वहीं गोपालगंज के एक प्रतिष्ठित परिवार में अचानक विपत्ति आ खड़ी हुई। सतीश पाण्डेय जी के पुत्र और कुचायकोट से लगातार छह बार विधायक रहे अमरेंद्र पाण्डेय ‘पप्पू’ के भतीजे तथा गोपालगंज के पूर्व जिला परिषद चेयरमैन मुकेश पाण्डेय की तबीयत अचानक बेहद खराब हो गई। स्थिति इतनी गंभीर थी कि उन्हें तुरंत गोरखपुर के एक अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। इलाज शुरू हुआ और धीरे-धीरे उनकी हालत में सुधार भी होने लगा, लेकिन इस पूरी परिस्थिति में सबसे अधिक ध्यान खींचने वाली बात थी – उनके चाचा विधायक अमरेंद्र पाण्डेय का व्यवहार और उनका निर्णय।
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जब एक तरफ पूरा बिहार चुनावी परिणामों और मतगणना की गहमागहमी में उलझा हुआ था, उसी समय 14 नवंबर को मतगणना हुई। आमतौर पर देखा जाता है कि नेता चुनाव जीतने के बाद सबसे पहले अपना जीत का प्रमाण पत्र लेने पहुंचते हैं, समर्थकों के साथ विजय जुलूस निकालते हैं, मीडिया के सामने बयान देते हैं और फिर विधानसभा में शपथ ग्रहण करने पहुंचते हैं। लेकिन अमरेंद्र पाण्डेय ने इन सभी औपचारिकताओं से खुद को दूर रखा।
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उन्होंने न तो मतगणना में भाग लिया, न ही जीत के बाद प्रमाण पत्र लेने पहुंचे और न ही विधानसभा में शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए। उनका एक ही स्पष्ट और भावुक संदेश था –
“मैं अपने भतीजे को इस हाल में अकेला छोड़कर घर नहीं जाऊँगा, चाहे कुछ भी हो जाए।”
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यह वाक्य मात्र शब्द नहीं, बल्कि एक गहरा भाव, एक मजबूत रिश्ता और एक मजबूत चरित्र का प्रमाण है। आज जब लोग अपने निजी स्वार्थ के लिए रिश्तों को ताक पर रख देते हैं, वहीं यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि असली शक्ति पद या सत्ता में नहीं, बल्कि रिश्तों को निभाने में है।
यह घटना सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए संदेश है। आज के तथाकथित “कलियुग” में, जहां भाई-भाई से, बेटा-बाप से और मित्र-मित्र से दूर हो जाता है, वहीं यह उदाहरण बताता है कि मानवता और संवेदना अब भी जीवित है। राजनीति की दुनिया में जहाँ हर कदम सोच-समझकर सत्ता के तराजू पर तौला जाता है, वहाँ इस तरह का फैसला लेना साहस और आत्मीयता का परिचायक है।
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अमरेंद्र पाण्डेय ने यह साबित कर दिया कि उनके लिए परिवार पहले है, राजनीति बाद में। उन्होंने रिश्तों की मर्यादा को प्राथमिकता देते हुए यह दिखा दिया कि सच्चा इंसान वही है जो कठिन समय में अपने अपनों के साथ खड़ा रहे। यही मूल्य, यही संस्कार और यही भावना हमारे समाज को आगे ले जा सकती है।
आज जब मुकेश पाण्डेय की हालत में सुधार हो रहा है, इस पूरे घटनाक्रम से सिर्फ उनका परिवार ही नहीं, बल्कि पूरा क्षेत्र गर्व और सम्मान की अनुभूति कर रहा है। यह कहानी भविष्य में आने वाली पीढ़ियों को यही सिखाएगी कि सफलता की असली पहचान पद, प्रमाण पत्र या शपथ नहीं, बल्कि वह इंसानियत है जो हम दूसरों के लिए निभाते हैं।
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समाज को आज ऐसे ही उदाहरणों की जरूरत है, जो यह याद दिलाएं कि रिश्ते ही असली पूँजी होते हैं। एक चाचा का अपने भतीजे के लिए ऐसा समर्पण न सिर्फ एक पारिवारिक जिम्मेदारी, बल्कि पूरे मानव समाज के लिए संदेश है कि “पहले इंसान बनो, बाकी सब बाद में।”
यह घटना आज की राजनीति और समाज दोनों के लिए एक आईना है — जिसमें साफ दिखाई देता है कि सच्चा नेता वही है, जो दिल से रिश्ते निभाए।
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