कविता
स्मृतियों की सुखद याद बेलों की
तरह हृदय में जड़ें जमाती रहती हैं,
कालान्तर में यह बेलें उपवन बन,
स्मृतियों का भान कराती रहती हैं।
स्मृतियाँ ये सुखद फलों की जिस
मिठास की तब अनुभूति कराती हैं,
आजीवन के लिये अंतर्मन में अपनों
की स्नेहिल प्रतिमा रच-बस जाती हैं।
जीवन में सब कुछ अस्थायी होता है,
यह सूर्योदय, सूर्यास्त हमें बतलाते हैं,
खुश रहें जीवन में रश्मिरथी के जैसे,
चंद्रमा कलाओं जैसा आनंद पाते हैं।
प्रार्थना के वक्त किसी का मंदिर
में होना आवश्यक नहीं होता है,
किंतु उस के मन मंदिर में ईश्वर
का होना अति आवश्यक होता है।
उम्र से क्या लेना देना, जहां विचार
मिलते हैं वहां सच्ची मित्रता होती है,
मन:स्थिति से क्या लेना जब मन में,
ईश्वर की प्रतिमा उपस्थित होती है।
हम आत्मा की गहराई से जानते हैं,
समझ ज्ञान से ज्यादा गहरी होती है,
आदित्य बहुतेरे मित्र हमें जानते होंगे,
पर कुछ ही ऐसे होंगे जो समझते होंगे।
•कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
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