19 नवंबर का दिन इतिहास में केवल घटनाओं का क्रम नहीं, बल्कि उन अमर व्यक्तित्वों की याद का दिन है, जिन्होंने अपने जीवन से समाज, साहित्य, कला, प्रशासन और शिक्षा की दिशा बदल दी। यह दिन भारत की सांस्कृतिक विरासत, लोक परंपराओं, न्यायिक मूल्यों और लोकतांत्रिक आदर्शों को नई ऊँचाइयाँ देने वाले महान लोगों के योगदान को स्मरण करने का अवसर है। निम्नलिखित लेख में, इस दिवस को विशेष बनाने वाले इन विभूतियों के जीवन, कार्य और विरासत पर प्रकाश डाला गया है।
ये भी पढ़ें – विजय, संघर्ष और बदलाव की ऐतिहासिक झलक
● दिगम्बर हांसदा (2020) — संथाली भाषा और आदिवासी अस्मिता के प्रहरी
पद्मश्री दिगम्बर हांसदा का जीवन संथाली भाषा, संस्कृति और साहित्य को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए समर्पित रहा। एक शिक्षाविद के रूप में उन्होंने आदिवासी युवाओं को अपनी भाषा पर गर्व करना सिखाया तथा पाठ्यक्रमों में संथाली साहित्य को शामिल कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके शोध कार्यों, लेखन और सामाजिक सक्रियता के कारण संथाली भाषा साहित्यिक मंचों पर सशक्त रूप से स्थापित हो सकी। 2020 में उनका निधन भारतीय भाषाई विरासत के लिए एक अपूरणीय क्षति था।
ये भी पढ़ें – इतिहास की वह रोशनी, जो आज भी भविष्य का मार्ग उजागर करती है”
● आर. के. त्रिवेदी (2015) — भारत के लोकतांत्रिक ढांचे के सुदृढ़ स्तंभ
भारत के पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त आर. के. त्रिवेदी ने निर्वाचन प्रक्रिया को और पारदर्शी, विश्वसनीय एवं तकनीक-संपन्न बनाने में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे अपने कठोर अनुशासन, निष्पक्षता और शांत नेतृत्व शैली के लिए जाने जाते थे। उनके कार्यकाल में चुनाव सुधारों पर विशेष बल दिया गया, जिससे भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली और मजबूत हुई। 2015 में उनके निधन ने देश को एक दूरदर्शी प्रशासक से वंचित कर दिया।
● आर. के. बीजापुरे (2010) — शास्त्रीय संगीत की अनूठी स्वर-साधना
आर. के. बीजापुरे भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रसिद्ध वादक थे, जिन्होंने हारमोनियम वादन को नई प्रतिष्ठा और अभिव्यक्ति प्रदान की। उनकी रचनाएँ और प्रस्तुतियाँ संगीत प्रेमियों के हृदय में गहरी छाप छोड़ जाती थीं। वे गुरु-शिष्य परंपरा के संवाहक थे और उनके विद्यार्थियों ने भी संगीत जगत में अपनी पहचान बनाई। 2010 में उनका निधन भारतीय संगीत जगत के लिए बड़ी क्षति साबित हुआ।
● रमेश भाई (2008) — समाज सुधार और मानवसेवा के प्रतीक
सर्वोदय आश्रम टडियांवा के संस्थापक रमेश भाई सत्य, सेवा और समर्पण की जीवंत प्रतिमूर्ति थे। वे विनोबा भावे और गाँधीवादी विचारधारा से प्रभावित होकर ग्रामीण upliftment, शिक्षा, नशामुक्ति और सामाजिक एकता के लिए अखंड प्रयासरत रहे। उनका जीवन गरीबों, वंचितों और ग्रामीण समुदायों के उत्थान की प्रेरणा है। 2008 में उनकी मृत्यु एक महान समाजसेवी की विदाई थी, जिसने हजारों जीवनों को छुआ।
● एम. हमीदुल्ला बेग (1988) — न्यायपालिका के मर्यादा-पुरुष
भारत के 15वें मुख्य न्यायाधीश एम. हमीदुल्ला बेग न्यायिक निष्पक्षता, मानवीय दृष्टिकोण और संविधानिक मूल्यों के अप्रतिम संरक्षक थे। उन्होंने न्याय को सरल, सुगम और आम नागरिक के हित में लाने पर जोर दिया। उनके निर्णय सामाजिक न्याय के सिद्धांतों पर आधारित होते थे। 1988 में उनका निधन भारतीय न्यायपालिका के लिए अपूरणीय क्षति था।
● वाचस्पति पाठक (1980) — साहित्य के शांत किन्तु शक्तिशाली स्वर
प्रसिद्ध उपन्यासकार वाचस्पति पाठक ने भारतीय साहित्य को अनेक उत्कृष्ट रचनाएँ दीं। उनकी लेखनी सामाजिक यथार्थ, मानवीय संवेदना और जीवन-संघर्षों का अद्भुत मिश्रण थी। वे उन लेखकों में से थे जो कम बोलते थे, लेकिन अपनी कहानियों से गहरी छाप छोड़ जाते थे। 1980 में उनके निधन ने साहित्य जगत को एक संवेदनशील और गंभीर लेखक से वंचित कर दिया।
मऊ (राष्ट्र की परम्परा डेस्क)जनपद के घोसी विधानसभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता…
संत कबीर नगर (राष्ट्र की परम्परा)। जिले के बघौली ब्लॉक का प्राथमिक विद्यालय डिहुलिया आज…
सोहगीबरवां वन्यजीव प्रभाग महराजगंज में ट्रांसफर नीति की खुलेआम अनदेखी महराजगंज(राष्ट्र की परम्परा)। सोहगीबरवां वन्यजीव…
महराजगंज(राष्ट्र की परम्परा)। पराली संकट इस बार किसानों के लिए पहले से कहीं ज्यादा चुनौती…
हर घर जल योजना में लापरवाही: खोदी सड़क के मरम्मत न होने से लोग परेशान…
लेखक – चंद्रकांत सी पूजारी, गुजरा बिहार विधानसभा चुनाव–2025 के नतीजों ने जहाँ एनडीए को…