भारतीय परमाणु विज्ञान के शिल्पकार डॉ. पी.के. अयंगर

पुनीत मिश्र

भारतीय विज्ञान और विशेषकर परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में जिन व्यक्तित्वों ने बिना किसी दिखावे के राष्ट्र की वैज्ञानिक नींव को सुदृढ़ किया, उनमें डॉ. प्रमोद कालीकर अयंगर का नाम अत्यंत सम्मान के साथ लिया जाता है। वे न केवल एक उच्च कोटि के वैज्ञानिक थे, बल्कि दूरदर्शी प्रशासक और राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखने वाले नीति-निर्माता भी थे। शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार और पद्मभूषण जैसे प्रतिष्ठित सम्मानों से अलंकृत डॉ. अयंगर ने भारत के परमाणु कार्यक्रम को आत्मनिर्भरता, अनुशासन और वैज्ञानिक आत्मविश्वास प्रदान किया।
डॉ. पी.के. अयंगर का जन्म 1931 में हुआ। प्रारंभ से ही उनकी रुचि गणित और भौतिकी में रही, जिसने आगे चलकर उन्हें नाभिकीय भौतिकी जैसे जटिल और महत्वपूर्ण क्षेत्र की ओर अग्रसर किया। उच्च शिक्षा के दौरान उन्होंने वैज्ञानिक चिंतन और अनुसंधान की वह मजबूत आधारशिला तैयार की, जिसने उनके पूरे जीवन को दिशा दी। उन्होंने आधुनिक परमाणु विज्ञान को केवल सैद्धांतिक रूप में नहीं, बल्कि व्यावहारिक और राष्ट्रोपयोगी दृष्टि से समझा।
उनका अधिकांश वैज्ञानिक जीवन भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर से जुड़ा रहा। यहां उन्होंने नाभिकीय रिएक्टरों, ईंधन चक्र और विकिरण विज्ञान से जुड़े अनेक महत्वपूर्ण शोध कार्य किए। भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के निदेशक के रूप में उन्होंने अनुसंधान को नई गति दी और स्वदेशी तकनीकों के विकास पर विशेष बल दिया। उनके नेतृत्व में यह संस्थान केवल अनुसंधान केंद्र नहीं रहा, बल्कि देश की ऊर्जा, चिकित्सा और रक्षा जरूरतों का एक मजबूत आधार बना।
परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष के रूप में डॉ. अयंगर ने भारत की दीर्घकालिक परमाणु नीति को स्पष्ट दिशा दी। उनका मानना था कि परमाणु ऊर्जा केवल बिजली उत्पादन का साधन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय विकास और सुरक्षा का एक रणनीतिक आधार है। अंतरराष्ट्रीय दबावों और तकनीकी प्रतिबंधों के दौर में भी उन्होंने आत्मनिर्भरता के सिद्धांत से समझौता नहीं किया और भारतीय वैज्ञानिकों की क्षमता पर भरोसा बनाए रखा।
1974 के पोखरण शांतिपूर्ण परमाणु परीक्षण की वैज्ञानिक तैयारी और योजना में उनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही। यह परीक्षण भारत की वैज्ञानिक क्षमता और आत्मविश्वास का प्रतीक बना। डॉ. अयंगर का दृष्टिकोण स्पष्ट था कि विज्ञान का उपयोग शक्ति प्रदर्शन के लिए नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सम्मान और सुरक्षा के लिए जिम्मेदारी के साथ किया जाना चाहिए।
उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो भारत में विज्ञान के क्षेत्र का सर्वोच्च सम्मान माना जाता है। इसके अतिरिक्त भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से भी अलंकृत किया। ये सम्मान उनके व्यक्तिगत गौरव से अधिक भारतीय विज्ञान जगत की उपलब्धियों के प्रतीक थे। उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया और वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय में देश की साख को मजबूत किया।
डॉ. पी.के. अयंगर का मानना था कि विज्ञान का अंतिम उद्देश्य मानव कल्याण है। वे वैज्ञानिकों से न केवल उत्कृष्ट शोध की अपेक्षा रखते थे, बल्कि सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी को भी उतना ही आवश्यक मानते थे। उनके विचारों में वैज्ञानिक स्वतंत्रता और राष्ट्रीय दायित्व एक-दूसरे के पूरक थे, विरोधी नहीं।
आज जब भारत परमाणु ऊर्जा और उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में एक सशक्त राष्ट्र के रूप में खड़ा है, तो इसके पीछे डॉ. पी.के. अयंगर जैसे वैज्ञानिकों की दूरदृष्टि, अनुशासन और निस्वार्थ सेवा की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। उनका जीवन और कार्य आने वाली पीढ़ियों के लिए यह प्रेरणा है कि सच्चा वैज्ञानिक वही है, जो अपने ज्ञान को राष्ट्र और मानवता के कल्याण के लिए समर्पित कर दे।

rkpNavneet Mishra

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