बागापार टोला बरईठवां में चल रहा शतचंडी सत चंडी सत चंडी महायज्ञ का आयोजन
महराजगंज(राष्ट्र की परम्परा)। सदर ब्लाक अंतर्गत ग्राम पंचायत बागापार टोला बरईठवां में चल रहे श्री शतचंडी महायज्ञ के पांचवें दिन चल रहे कार्यक्रम में पंडित कृष्ण मोहन त्रिपाठी ने शिव पार्वती विवाह की कथा सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया । उन्होंने कथा में कहा कि हिमवान की स्त्री मैना थी। जगज्जननी भवानी ने उनकी कन्या के रूप में जन्म लिया। वे सयानी हुई। दम्पत्ति को इनके विवाह की चिंता हुई। इन्हीं दिनों नारद उनके यहां आये। जब दम्पति ने अपनी कन्या के उपयुक्त वर के बारे में उनसे प्रश्न किया, नारद ने कहा इसे बावला वर प्राप्त होगा। यद्यपि वह देवताओं द्वारा वंदित होगा।यह सुनकर दम्पति को चिंता हुई। नारद ने इस दोष को दूर करने के लिए गिरिजा द्वारा शिव की उपासना का उपदेश दिया। अत: गिरिजा शिव की उपासना में लग गयीं। जब गिरिजा के यौवन और सौन्दर्य का कोई प्रभाव शिव पर नहीं पड़ा, देवताओं ने कामदेव को उन्हें विचलित करने के लिए प्रेरित किया। किंतु कामदेव को उन्होंने भस्म कर दिया। फिर भी गिरिजा ने अपनी साधना न छोड़ी। कंद, मूल, फल छोड़कर वे बेल के पत्ते खाने लगीं और फिर उहोंने उसको भी छोड़ दिया। तब उनके प्रेम की परीक्षा के लिए शिव ने बटु का वेष धारण किया और वे गिरिजा के पास गये। तपस्या का कारण पूछने पर गिरिजा की सखी ने बताया कि वह शिव को वर के रूप में प्राप्त करना चाहती हैं। यह सुनकर बटु ने शिव के सम्बन्ध में कहा वे भिक्षा मांगकर खाते-पीते हैं, मसान में वे सोते हैं।पिशाच-पिशाच उनके अनुचर है। ऐसे वर से उसे क्या सुख मिलेगा किंतु गिरिजा अपने विचारों में अविचल रहीं। यह देखकर स्वयं शिव साक्षात प्रकट हुए और उहोंने गिरिजा को कृतार्थ किया। इसके बाद शिव ने सप्तर्षियों को हिमवान के घर विवाह की तिथि आदि निश्चित करने के लिए भेजा और हिमवान से लगन कर सप्तर्षि शिव के पास गये। विवाह के दिन शिव की बारात हिमवान के घर गयी। बावले वर के साथ भूत प्रेतादि की वह बारात देखकर नगर में कोलाहल मच गया। मैना ने जब सुना तो वह बड़ी दु:खी हुई और हिमवान के समझाने- बुझाने पर किसी प्रकार शांत हुई। यह लीला कर लेने के बाद शिव अपने सुन्दर और भव्य रूप में परिवर्तित हो गये और गिरिजा के साथ धूम-धाम से उनका विवाह हुआ। इस दौरान, ग्राम पंचायत के सैकड़ो की संख्या में श्रद्धालु व श्रोता उपस्थित रहें।
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