भक्त का तात्पर्य है करुणा से भरा हुआ व्यक्त – महामण्डलेश्वर स्वामी भास्करानंद

बलिया (राष्ट्र की परम्परा)। भक्ति से ज्ञान और ज्ञान से मुक्ति मिलती है। जहाँ भक्ति होगी वहाँ ज्ञान वैराग्य भी होंगे। भगवान को अपना मान लेना ही भाक्त है। श्रीहरि को छोड़कर यहाँ सब कुछ नश्वर है। यहाँ आने का पता भले हो किन्तु जाने का का पता नहीं, जबकि यहाँ से जाना ध्रुव सत्य है। उक्त उद्‌गार द्वादशवर्षीय पूर्व मौनव्रती स्वामी ईश्वरदास ब्रह्मचारी महाराज द्वारा आयोजित अद्वैत शिवशक्ति राजसूय महायज्ञ में भक्तिभूमि श्रीधाम वृन्दावन से चलकर पधारे महामण्डलेश्वर आचार्य स्वामी भास्करानन्द महाराज ने व्यक्त किया डूहा बिहरा ग्रामान्तर्गत वनखण्डीनाथ (श्री नागेश्वरनाथ महादेव) मठ के पावन परिसर में व्यासपीठ से श्रद्धालुओं को सम्बोधित कर रहे थे। कहा कि भक्ति के वशीभूत भगवान शबरी के बेर व विदुरानी के साग खाते और पाण्डवों के यहाँ यज्ञ में जूठे पत्तल उठाते हैं क्योंकि सबसे ऊँची प्रेम सगाई। प्रभु को भावशून्य दुर्योधन के मेवा मिष्ठान छप्पन भोग नहीं भाये। भक्ति पर केन्द्रित कथा में क्क्ता ने नवधा भक्ति की विशद व्याख्या करते हुए कहा कि परीक्षित ने एक बार कथा सुनी तो उसका उध्दार हो गया, आप बार-बार सुनते हैं तो कुछ नहीं होता, सुविचार्य है। कथा मनोरंजन के लिए नहीं, दुःख भञ्जन के लिए होती है। एकाग्र हो एक आसन में बैठकर कथा-श्रवण करना चाहिए। जब तक सुनोगे नहीं तब तक परमात्मा को जानोगे नहीं। कथा से जीवन की व्यथा दूर होती है। सन्त निष्पाप होता है, लक्ष्मण को शक्तिवाण लगने से हनुमान जी सञ्जीवनी लाने में विलम्ब की सम्भावना पर बोले- यदि देर हुई तो सूर्योदय होने नहीं दूंगा। सुरदुर्लभ मनुष्य तन में सत्संग दुर्लभ है। कीर्तन से कपट छूट ता है और पापक्षय होता है। नियत कर्म और प्रभुका स्मरण साथ साथ करते जाओ क्योंकि-‘जो करते रहोगे भजन धीरे-धीरे, तो मिल जायेंगे वो सजन धीरे-धीरे। माता, पिता, गुरु, बड़े बुजुर्गों और स्त्रियों के लिए पति की चरणसेवा करणीय है। स्वजन परिजन जैसे भगवान की सेवा एवं अर्चना करनी चाहिए। मूर्ति से भी प्रभु प्रकट होने को तैयार हैं, उनको बुलाना तो सीखो । अहंकार छोड़कर झुकना जाना, विनम्र बनो, सबको नमन- वन्दन करो। इस मायावी दुनिया के दास मत बनो, भगवान केदास बने । सन्त-भगवन्त के पाँव पकड़ लो, दुनिया में किसी के पाँव पकड़ने की जरूरत नहीं। जीवन में सख्य- भाव की भक्ति आ जाय तो फिर क्या पूछना ! अन्ततः अपने आपको प्रभु के लिए समर्पित कर देना आत्म निवेदन है, जैसे बिल्ली का बच्चा । बताया कि शिवार्चन अनादि है। मनोकामना पूर्ण करने में महादेव अग्रणी है। आँखें सबको देखती हैं पर वे ही आँखें धन्य हैं जो सर्वत्र परमात्मा का दर्शन करती है। गोपियों को श्यामसुन्दर के सिवा कुछ नहीं दिखता। दुनिया बाहर देखती है और भक्त अन्दर और भक्त अन्दर देखता है। चावल कड़ा और – अलग होता है किन्तु भात बनकर एक और मुलायम हो जाता है। साध्वी कृष्णानन्द ने अपने सुमधुर संगीत से श्रोताओं को मुग्ध कर दिया।

Karan Pandey

Recent Posts

बंगला देश मे हिन्दुओ पर हो रहे अत्याचार को लेकर आक्रोश प्रदर्शन

देवरिया (राष्ट्र की परम्परा)विश्व हिंदू परिषद, केंद्र के निर्देशानुसार बांग्लादेश में हो रहे हिंदुओं पर…

2 minutes ago

वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह संपन्न

मुंबई (राष्ट्र की परम्परा )हिन्दी विद्या प्रचार समिति द्वारा संचालित हिन्दी हाई स्कूल घाटकोपर का…

27 minutes ago

भारत–नेपाल सीमा पर तस्करी के खिलाफ बड़ी कार्रवाई, 118 बोरी विदेशी मक्का और दो पिकअप जब्त

महराजगंज (राष्ट्र की परम्परा)। भारत–नेपाल सीमा पर अवैध तस्करी के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान…

1 hour ago

युवा कांग्रेसी चलाएंगे सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ आंदोलन – प्रदीप ठकुराई

देवरिया (राष्ट्र की परम्परा)। भारतीय जनता पार्टी की सरकार में सबसे अधिक परेशान युवा वर्ग…

2 hours ago

बिजली उपभोक्ताओं को बड़ी राहत, शुरू हुई बिजली बिल राहत योजना 2025-26

महराजगंज (राष्ट्र की परम्परा)। बिजली बिल के बकाया से जूझ रहे उपभोक्ताओं के लिए बड़ी…

2 hours ago

UP में ब्राह्मण नाराज? 15 जिलों की 100+ सीटों पर असर, BJP के लिए क्यों अहम है 10% वोटबैंक

लखनऊ (राष्ट्र की परम्परा डेस्क)। उत्तर प्रदेश की राजनीति में जातीय समीकरण एक बार फिर…

3 hours ago