26 दिसंबर: वे अमर विभूतियाँ, जिनका निधन इतिहास की चेतना बन गया

डॉ. मनमोहन सिंह (2024) – मौन अर्थशास्त्री, जिनकी नीतियाँ भारत की रीढ़ बनीं
डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को गाह (अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत) में हुआ। वे भारत के ऐसे प्रधानमंत्री रहे जिन्होंने शांति, संयम और विद्वत्ता से देश का नेतृत्व किया। ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज जैसे विश्वविख्यात संस्थानों से शिक्षा प्राप्त कर उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को 1991 के आर्थिक सुधारों के माध्यम से नई दिशा दी। उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण उनके दूरदर्शी निर्णय थे, जिनसे भारत वैश्विक आर्थिक मंच पर स्थापित हुआ। राज्यसभा सदस्य, वित्त मंत्री और दो बार प्रधानमंत्री रहते हुए उन्होंने देशहित में दीर्घकालिक नीतियाँ बनाईं। 26 दिसंबर 2024 को उनका निधन भारत के बौद्धिक और नीतिगत इतिहास में अपूरणीय क्षति माना गया।

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पंकज सिंह (2015) – कविता में जनसंघर्ष की सशक्त आवाज़
पंकज सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश में हुआ था। वे समकालीन हिंदी कविता के उन रचनाकारों में थे जिन्होंने आम आदमी की पीड़ा, संघर्ष और सामाजिक अन्याय को शब्द दिए। उनकी कविताओं में सत्ता के प्रति प्रश्न, लोकतांत्रिक चेतना और मानवीय संवेदनाएँ स्पष्ट दिखाई देती हैं। वे साहित्य को केवल सौंदर्य नहीं, बल्कि प्रतिरोध का माध्यम मानते थे। उनका लेखन युवाओं और सामाजिक आंदोलनों के लिए प्रेरणा बना। 26 दिसंबर 2015 को उनका निधन हिंदी साहित्य जगत के लिए गहरी क्षति था। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज को जागरूक करने का जो योगदान दिया, वह सदैव स्मरणीय रहेगा।
एस. बंगरप्पा (2011) – कर्नाटक की राजनीति का प्रभावशाली चेहरा
एस. बंगरप्पा का जन्म कर्नाटक के शिमोगा ज़िले में हुआ। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और कर्नाटक के 12वें मुख्यमंत्री रहे। उनका राजनीतिक जीवन सामाजिक न्याय, ग्रामीण विकास और पिछड़े वर्गों के उत्थान को समर्पित रहा। मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने शिक्षा, सिंचाई और ग्रामीण बुनियादी ढांचे पर विशेष ध्यान दिया। वे केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे। 26 दिसंबर 2011 को उनके निधन से कर्नाटक की राजनीति में एक अनुभवी नेतृत्व का अंत हो गया।

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शंकरदयाल शर्मा (1999) – संवैधानिक मर्यादाओं के सजग प्रहरी
शंकरदयाल शर्मा का जन्म मध्य प्रदेश के भोपाल में हुआ था। वे भारत के नौवें राष्ट्रपति रहे और इससे पूर्व उपराष्ट्रपति तथा कई राज्यों के राज्यपाल भी रहे। स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े शर्मा जी ने लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक परंपराओं की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राष्ट्रपति पद पर रहते हुए उन्होंने संसद और लोकतंत्र की गरिमा को सर्वोच्च रखा। 26 दिसंबर 1999 को उनका निधन हुआ, लेकिन उनकी निष्ठा और सिद्धांत आज भी भारतीय लोकतंत्र के मार्गदर्शक हैं।

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राम स्वरूप (1998) – वैदिक चिंतन के आधुनिक व्याख्याकार
राम स्वरूप का जन्म उत्तर भारत में हुआ। वे वैदिक परंपरा के प्रखर बुद्धिजीवी, दार्शनिक और लेखक थे। उन्होंने भारतीय दर्शन, संस्कृति और धर्म पर गहन लेखन किया। पश्चिमी दृष्टिकोण के समक्ष भारतीय सभ्यता के बौद्धिक पक्ष को मजबूती से प्रस्तुत करना उनका प्रमुख योगदान रहा। उनकी पुस्तकें आज भी शोधार्थियों के लिए संदर्भ ग्रंथ हैं। 26 दिसंबर 1998 को उनका निधन भारतीय बौद्धिक परंपरा के लिए एक गहरी क्षति माना गया।
के. शंकर पिल्लई (1989) – कार्टून में लोकतंत्र की आवाज़
के. शंकर पिल्लई, जिन्हें ‘शंकर’ के नाम से जाना जाता है, का जन्म केरल में हुआ। वे भारत के सबसे प्रसिद्ध राजनीतिक कार्टूनिस्ट थे। उनके कार्टून सत्ता और समाज पर तीखा व्यंग्य करते थे, फिर भी लोकतांत्रिक मर्यादा बनाए रखते थे। ‘शंकर’s वीकली’ के माध्यम से उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नया आयाम दिया। 26 दिसंबर 1989 को उनका निधन हुआ, लेकिन उनके बनाए पात्र आज भी भारतीय पत्रकारिता की अमूल्य धरोहर हैं।

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बीना दास (1986) – नारी शक्ति और क्रांतिकारी साहस की प्रतीक
बीना दास का जन्म कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ। वे भारत की साहसी महिला क्रांतिकारियों में से एक थीं। ब्रिटिश शासन के विरुद्ध उन्होंने निर्भीक होकर संघर्ष किया और राष्ट्रभक्ति का उदाहरण प्रस्तुत किया। उनका जीवन महिलाओं के साहस और स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका को रेखांकित करता है। 26 दिसंबर 1986 को उनका निधन हुआ, पर उनका त्याग आज भी प्रेरणा देता है।
यशपाल (1976) – साहित्य में क्रांति और यथार्थ के रचनाकार
यशपाल का जन्म पंजाब प्रांत में हुआ था। वे हिंदी के महान कथाकार, उपन्यासकार और निबंध लेखक थे। ‘दिव्या’, ‘झूठा सच’ जैसे उपन्यासों में उन्होंने समाज की जटिलताओं और राजनीतिक यथार्थ को उकेरा। स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े यशपाल जी ने साहित्य को सामाजिक परिवर्तन का माध्यम बनाया। 26 दिसंबर 1976 को उनका निधन हिंदी साहित्य के लिए युगांतकारी क्षण था।

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गोपी चंद भार्गव (1966) – गांधीवादी विचारों के सच्चे प्रतिनिधि
गोपी चंद भार्गव का जन्म पंजाब में हुआ। वे स्वतंत्रता सेनानी, गांधीवादी नेता और पंजाब के प्रथम मुख्यमंत्री रहे। ‘गांधी स्मारक निधि’ के प्रथम अध्यक्ष के रूप में उन्होंने गांधीजी के विचारों को आगे बढ़ाया। सादगी, सेवा और राष्ट्रनिर्माण उनका मूल मंत्र था। 26 दिसंबर 1966 को उनका निधन हुआ।
भूपेंद्रनाथ दत्त (1961) – क्रांति और विचार का संगम
भूपेंद्रनाथ दत्त का जन्म पश्चिम बंगाल में हुआ। वे प्रसिद्ध क्रांतिकारी, लेखक और समाजशास्त्री थे तथा शहीद भगत सिंह के चाचा थे। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी के साथ सामाजिक चिंतन को भी समृद्ध किया। 26 दिसंबर 1961 को उनका निधन हुआ।

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हेनरी लुईस विवियन डेरोजियो (1831) – भारतीय नवजागरण के अग्रदूत
डेरोजियो का जन्म कोलकाता में हुआ। वे कवि, शिक्षक और समाज सुधारक थे। ‘यंग बंगाल मूवमेंट’ के माध्यम से उन्होंने युवाओं में वैज्ञानिक सोच और स्वतंत्र विचार को बढ़ावा दिया। 26 दिसंबर 1831 को उनका निधन हुआ।

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बाबर (1530) – मुगल साम्राज्य का संस्थापक
बाबर का जन्म फरगना (वर्तमान उज्बेकिस्तान) में हुआ। उन्होंने भारत में मुगल साम्राज्य की नींव रखी। युद्ध कौशल, प्रशासनिक दृष्टि और सांस्कृतिक योगदान के लिए वे जाने जाते हैं। 26 दिसंबर 1530 को उनका निधन भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय समाप्त करता है।

Editor CP pandey

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