कुलपति की मनमानी महाविद्यालय शिक्षकों और विद्यार्थियों पर पड़ेगी भारी-अजय मिश्रा

एक ही विश्वविद्यालय से तीन तरह की डिग्री देने की तैयारी

गोरखपुर(राष्ट्र की परम्परा)
दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर के वर्तमान कुलपति की हठधर्मिता और विश्वविद्यालय के शिक्षकों और विद्यार्थियों को संबद्ध अनुदानित महाविद्यालय शिक्षकों और विद्यार्थियों से श्रेष्ठ मानने की सोच आने वाले दिनों में महाविद्यालयों के लिए भारी मुसीबत बनेगी ।यह जून को संपन्न कार्य परिषद की बैठक में विश्वविद्यालय के कुलपति ने 3 तरह के डिग्री देने की बात कह कर सबको चौंका दिया ।नयी व्यस्थापन के अनुसार विश्वविद्यालय और संबद्ध महाविद्यालयों में चार वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम लागू हो गया है लेकिन जिन महाविद्यालयों में केवल स्नातक तक अधिक कक्षायें चलती हैं उन महाविद्यालयों को चार वर्षीय स्नातक कोर्स चलाने के लिए सम्बद्धता हेतु नए सिरे से आवेदन की बात कह दी गई है ।जब तीन वर्षीय पाठ्यक्रम पूरे प्रदेश में लागू हुआ था तब तो नये सिरे से आवेदनकर्ताओं की कोई बात नहीं थी, तब अब ऐसा क्यों कर रही है यह बात समझ से परे है।जिन महाविद्यालय में परास्नातक स्तर तक की कक्षायें चलती हैं वहाँ चार वर्षीय कोर्स चलाने के संबद्धता हेतु नये सिरे से आवेदन तो नहीं करना होगा लेकिन वहाँ से उत्तीर्ण होने वाले परीक्षार्थियों को बी ए आनर्स की डिग्री मिलेगी, जबकि केवल विश्वविद्यालय केंद्र से उत्तीर्ण होने वाले विद्यार्थियों को डिग्री विथ रिसर्च की उपाधि प्राप्त होगी ।अर्थात अब एक हीं विश्वविद्यालय में विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण होने वाले विद्यार्थियों को अलग डिग्री , स्नातक महाविद्यालय से उत्तीर्ण होने वाले विद्यार्थियों को अलग डिग्री और परास्नातक स्तरीय महाविद्यालय से उत्तीर्ण होने वाले विद्यार्थियों को अलग डिग्री मिलेगी, तो इसका खामियाजा महाविद्यालयों को भुगतना पड़ेगा और अधिकांश विद्यार्थी प्रवेश विश्वविद्यालय का रुख़ कर लेंगे ।इस नयी व्यवस्था में महाविद्यालयों का प्रवेश प्रभावित होगा ।कुलपति का यह कहना है कि चूंकि विश्वविद्यालय ही केवल रिसर्च सेंटर है इसलिए सम्बद्ध महाविद्यालयों से उत्तीर्ण होने वाले हैं, विद्यार्थियों को डिग्री विथ रीसर्च के उपाधि नहीं दी जा सकती है ।यह बात समझ से परे है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की किस धारा के तहत कुलपति महाविद्यालयों को रिसर्च सेंटर मानने से सिरे से इनकार कर रहीं हैं ।काफ़ी जद्दो जहद के बाद दो वर्ष बाद सम्पन्न होने जा रहे, रेट की परीक्षा में सम्बद्ध अनुदानित महाविद्यालय के शिक्षकों को भी प्रवेश परीक्षा देने के लिए बाध्य करना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है ।सात आठ वर्ष पूर्व जिन शिक्षकों ने नैट और जेआरएफ़ की परीक्षा उत्तीर्ण कर आयोग की लिखित और साक्षात्कार परीक्षा पास कर असिस्टेंट प्रोफेसर बने है, कुलपति की नयी व्वयस्था में उन्हें अब रेट की परीक्षा देने के लिए बाध्य किया जा रहा है।यह पूरी तरह कुलपति का मनमानापन है । ऊपर से झुनझुना यह पकड़ा देना कि अगले सत्र से उन्हें रेट परीक्षा से छूट दी जाएगी जबकि वह भी अच्छी तरह जानती हैं कि अगले बरस से रिसर्च में प्रवेश नेट परीक्षा के माध्यम से ही होगा ।संबद्ध महाविद्यालयों में आयोग द्वारा चयनित शिक्षकों का 2 वर्ष तो पहले ही विश्वविद्यालय द्वारा परीक्षा समय से आयोजित न होने के कारण बर्बाद हो चुका है ऊपर से अब रेट परीक्षा में सम्मिलित होने की अनिवार्यता ने उन्हें और मुसीबत में डाल दिया है।

rkpnews@desk

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