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ठेकेदार नहीं तैयार नित्य नए नियम थोप रही सरकार


आखिर टेंडर का बहिष्कार क्यों : शरद सिंह
लखनऊ (राष्ट्र की परम्परा) सरकार के नित्य नए प्रयोग से लोक निर्माण विभाग में ठेकेदारी कर रहे ठेकेदार पिछले 4 साल से नियमों में नित्य नए बदलाव किए जाने से लोक निर्माण विभाग का पूरा ढांचा ही प्रभावित हो गया है। ठेकेदार अस्तित्व बचाने में परेशान तो सरकार अपने ही नारे सबका साथ सबका विकास के नारे से पीछे हटते बड़े का विकास बड़े का साथ की नीति पर काम कर रही है।

ठेकेदार क्यों विवश है?

1- पत्थर गिट्टी के सड़क में प्रयोग के बाद भुगतान के समय रॉयल्टी लोक निर्माण विभाग में निर्माण कार्यों पर मांगी जाती थी जो पूर्व में लोक निर्माण विभाग द्वारा रॉयल्टी की कटौती करके खनन विभाग के पास जमा कर दिया जाता था और खनन विभाग को भी अपनी रॉयल्टी समय से प्राप्त हो जाती थी किंतु 2017 से रॉयल्टी के परिवहन की जिम्मेदारी ठेकेदारों पर जबरन थोप दी गई अब ठेकेदार परिवहन कर्ता से प्राप्त रॉयल्टी का सत्यापन विभाग में करता है और गलत पाए जाने पर 6 गुना दंड का भागी हो रहा है रॉयल्टी के इस मकर जाल में उलझ कर ठेकेदार अपनी पूंजी भी गवा रहा है। जब ठेकेदार अपनी आने वाली समस्याओं के संबंध में मुख्य अभियंता से लेकर के प्रमुख अभियंता तक ने पूर्ववर्ती व्यवस्था के अनुसार रॉयल्टी की कटौती ठेकेदारों के देयक से करने के लिए शासन से आवेदन पत्रों के माध्यम से मांग किया गया पर उनकी बातों को विभाग नहीं मान ठेकेदार ने रॉयल्टी ठेकेदारों के देयक से काट ली जाए पर थोपी गई 6 गुना दंड समाप्त किया जाए पर न विभाग न सरकार के कानों तक आवाज नहीं पहुंची।
२- कोषागार भुगतान प्रणाली 2022 में बजट की व्यवस्था के कारण सीसीएल लैप्स होने के बाद आनन फानन में कोषागार भुगतान प्रणाली लागू की गई जिस के कारण कई दुष्परिणाम आए कोषागार भुगतान प्रणाली लागू होने के बाद पार्ट 2 पार्ट 5 के डिपॉजिट भुगतान ठेकेदारों के रुक गए जिसके कारण लाखों करोड़ों रुपए ठेकेदारों की भुगतान नहीं हो पाए और बैंकों के कर्ज बढ़ जाने के कारण ठेकेदार पर कर्ज की बोझ में दबकर या बर्बाद हो रहे हैं या आत्म हत्या को विवश इस व्यवस्था के सुधार के लिए भी संगठन पिछले तीन वर्षों से लगातार पत्राचार और बात कर रहा पर न सरकार न विभाग ही कोई हल नहीं निकला सका।
3- दो प्रतिशत जमानत धनराशि पूरे भारत में कार्यदाई संस्थानों में निविदा आमंत्रण पर ली जाती है फाइनेंशियल हैंड बुक में भी दो प्रतिशत जमानत धनराशि है केवल उत्तर प्रदेश के लोक निर्माण विभाग में निविदा आमंत्रण पर 10% जमानत धनराशि ली जाती है जो ठेकेदार पर एक प्रकार का अतिरिक्त बोझ डाला जाता इस संबंध में विभागअध्यक्ष ने भी नियमों का उल्लेख देते हुए शासन से अनुरोध किया था किंतु शासन ने उनकी बातों को अस्वीकार कर दिया।
4- शेड्यूल का रेट सामग्रियोंके दरो का निर्धारण बाजार की दरों से काफी कम निर्धारित की गई है चाहे सीमेंट हो या मजदूर हो बाजार में वर्तमान समय की दरो के अनुरूप नहीं है शेड्यूल आफ रेट का निर्धारण भी प्रत्येक 6 माह में करने का प्रावधान है किंतु दरो का निर्धारण 3 साल पर किया जा रहा है जो ठेकेदारों पर थोपा जाता है साथ धरातल की दर से भिन्न होती है।
5- वर्तमान समय में तात्कालिक रूप से मार्गो के अनुरक्षण के संबंध में जो नए नियम ले गए हैं वह वर्तमान समय में लोक निर्माण विभाग के सड़कों के अनुरूप नहीं है लोक निर्माण विभाग के ग्रामीण मार्गों की सड़क जो पूर्व में बनी हुई है जिनका लेवल काफी नीचे हो चुका है जिनकी पर्याप्त मोटीई नहीं रह गई है साथ ही बहुत सी सड़क ऐसी भी है जो बाढ़ ग्रस्त एरिया की हैं , या बाजार एवं काशन में आबादी पोषण में जहां नाली का निर्माण नहीं है ,जल भराव होता है इन सब बातों पर बिना ध्यान दिए नियमों का प्रयोगात्मक तौर पर परीक्षण किया जा रहा है, जबरिया ठेकेदार पर थोप कर बिना सोचे समझे सैद्धांतिक सिद्धांत को लागू कर दिया गया जो किसी दशा में उचित नहीं है । लोक निर्माण विभाग के द्वारा पूर्व में अनुरक्षण की व्यवस्था नहीं की जा सकी थी, या नहीं कर पाई, जिसमें विभाग के पास पर्याप्त संसाधन और अरबो रुपए खर्च करने के बाद भी अच्छे परिणाम नहीं आ पाये, उस व्यवस्था को बिना किसी प्रायोगिक तौर पर लागू किए अनुरक्षण की कमियों को दूर किए बिना सीधे तौर पर ठेकेदारों के ऊपर थोप देना जो कि किसी भी दशा में बिना पर्याप्त मोटाई बढाये संभव नहीं है और अनुरक्षण की दरे भी काफी कम दी जा रही है । पूर्व में यह नियम पीएमजीयसवाई की सड़कों पर लागू है पर पीएमजीएसवाई के दरें से कम दर दे कर 5 साल रखरखाव का नियम भी थोपना ठेकेदार हित में नहीं है। पीएमजीयसवाई मैं अनुरक्षण डरे पूर्व से लागू है एक ही स्पेसिफिकेशन की सड़कों में अनुरक्षण की दरें भिन्न-भिन्न होना समझ से परे है।
समस्याओं को लेकर पिछले तीन वर्ष से प्रदेश के ठेकेदार शोषित पीड़ित हो रहे थे और लगातार पत्राचार और मुलाकात उच्च अधिकारियों से कर रहे है पर हल नहीं निकलने के कारण संगठन मजबूर होकर टेंडर बहिष्कार की तरफ बढ गया है। विभाग व सरकार की हठधर्मिता ठेकेदारों पर भारी पड़ रहा है।

Editor CP pandey

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