दीपावली केवल एक त्यौहार नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, परंपरा और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। यह पर्व न केवल अंधकार पर प्रकाश की विजय का संदेश देता है, बल्कि हमारे जीवन में भी नए उत्साह, सृजनशीलता और स्वदेशी चेतना का संचार करता है। ऐसे में, यदि हम इस पावन पर्व को स्वदेशी भाव के साथ मनाएँ तो यह केवल दीपों की रोशनी नहीं, बल्कि आर्थिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता का भी उजास फैलाएगा।
आज बाजारों में सस्ते चीनी सामानों की भरमार ने भारतीय उत्पादकों और कारीगरों की मेहनत को पीछे धकेल दिया है। दीये, लाइटें, झालरें, मूर्तियाँ, सब कुछ विदेशी बाजारों से आ रहा है। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि यह सस्ता चमकदार सामान हमारी अपनी अर्थव्यवस्था पर कितना भारी पड़ रहा है? जब हम चीनी लाइट खरीदते हैं, तो उसका मुनाफा हमारे कुम्हार, बढ़ई, बुनकर या हस्तशिल्पी को नहीं, बल्कि विदेश को जाता है। इससे हमारे गांवों की अर्थव्यवस्था कमजोर होती है और लाखों लोगों की आजीविका पर असर पड़ता है।
भारत सदियों से आत्मनिर्भरता और स्थानीय उत्पादन की भूमि रहा है। गांधीजी ने “स्वदेशी” को राष्ट्र निर्माण का मूल मंत्र बताया था। आज जब ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे अभियान चल रहे हैं, तो हमारा दायित्व है कि हम अपने त्योहारों को भी इस विचार से जोड़ें। मिट्टी के दीयों, घरेलू झालरों, हस्तनिर्मित सजावट और भारतीय मिठाइयों से सजी दिवाली न केवल अधिक सुंदर और पारंपरिक होगी, बल्कि इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भी नवप्राण का संचार होगा।
इस दिशा में भारत तिब्बत समन्वय संघ (बीटीएसएस) समेत अनेक सामाजिक व सांस्कृतिक संस्थाएँ भी निरंतर जन-जागरूकता फैलाने में जुटी हैं। वे लोगों से अपील कर रही हैं कि इस दीपावली पर स्वदेशी वस्तुओं को प्राथमिकता दें और विदेशी, विशेषकर चीनी उत्पादों से दूरी बनाएं। ऐसे प्रयास न केवल उपभोक्ता चेतना को बढ़ाते हैं बल्कि राष्ट्रहित में एक सशक्त संदेश भी देते हैं।
चीनी वस्तुओं का बहिष्कार केवल आर्थिक निर्णय नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक संकल्प है। यह संकल्प है, अपनों को अपनाने का, अपनी धरती, अपनी मिट्टी और अपने कारीगरों के प्रति सम्मान जताने का। जब हर घर में स्वदेशी दीप जलेंगे, तब वह रोशनी केवल घरों को नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा को भी प्रकाशित करेगी।
इस दीपावली पर हमें तय करना होगा कि हम सिर्फ दीप जलाएँगे या देश का दीपक भी प्रज्वलित करेंगे। आइए, इस बार चीनी समानों का बहिष्कार कर स्वदेशी दिवाली मनाएँ, ऐसी दिवाली, जिसमें देशभक्ति की लौ हर दीपक में झिलमिलाए।
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