संत कबीर नगर (राष्ट्र की परम्परा)। जिला कृषि रक्षा अधिकारी शशांक चौधरी ने जनपद के किसान भाईयों को गाजर घास (Parthenium hysterophors) से होने वाले दूष्प्रभाव के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यह एक घास है जो बड़े आक्रामक तरीके से फैलती हैl गाजर घास फसलों के अलावा मनुष्यों एवं पशुओं के लिए गम्भीर समस्या हैl इस घास के सम्पर्क में आने पर मनुष्यों में चर्म रोग, क्षय रोग, दमा, सूजन आदि रोग हो जाता है। उन्होंने बताया कि गाजर घास एक राष्ट्रीय समस्या है, जिसका नियंत्रण करना नितान्त आवश्यक है।
उन्होंने बताया कि वर्षा ऋतु में गाजर घास को फूल आने से पहले जड़ से उखाड़कर कम्पोस्ट एवं वर्मी कम्पोस्ट बनाना चाहिएl वर्षा आधारित क्षेत्रों में शीघ्र बढ़ने वाली फसलें जैसे- ऊँचा, ज्वार, बाजरा, मक्का आदि की फसलें लेनी चाहिए, अक्टूबर-नवम्बर में अकृषित क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धात्मक पौधे जैसे चकौढ़ा (सेन्ना सिरसिया) के बीज एकत्रित कर उन्हें फरवरी मार्च में छिड़क देना चाहिए। यह वनस्पतियाँ गाजर घास की वृद्धि एवं विकास को रोकती है, घर के आस पास बगीचे उद्यान एवं संरक्षित क्षेत्रों में गेंदे के पौधे लगाकर गाजर घास के फैलाव एवं वृद्धि को रोका जा सकता है एवं रसायनिक नियंत्रण हेतु ग्लाइफोसेट (1 से 1.5 प्रतिशत) अथवा मेद्रव्यूजिन (0.3से0.5 प्रतिशत) का छिड़काव करायें, जैविक नियंत्रण हेतु मैक्सिकन बीटल (जाइगोग्रामा बाइक्लोराटा) नामक कीट को वर्षा ऋतु में घास पर छोड़ना चाहिए तथा अपने परिसर को गाजर घास से मुक्त करने के लिए सभी सम्भव प्रयास करेंl ताकि इस हानिकारक घास से बचा जा सके।
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