बिहार चुनाव 2025: एनडीए और महागठबंधन की साख दांव पर

👉 “बिहार का महा संग्राम: गया टाउन में BJP का गढ़ बनाम बदलाव की चुनौती, गोविंदगंज में चिराग की साख दांव पर — देखें कौन मारेगा बाज़ी?”

✍️ पटना (राष्ट्र की परम्परा डेस्क)बिहार विधानसभा चुनाव 2025 जैसे-जैसे नज़दीक आ रहे हैं, राज्य का राजनीतिक पारा चरम पर पहुंच गया है। इस बार दो सीटें—पूर्वी चंपारण की गोविंदगंज और गया टाउन विधानसभा सीट—सबकी नज़र में हैं। जहां एक ओर गोविंदगंज में एनडीए की सहयोगी एलजेपी (रामविलास) अपनी साख बचाने की कोशिश में है, वहीं गया टाउन में बीजेपी अपने परंपरागत गढ़ को बनाए रखने की जद्दोजहद में जुटी है। दोनों सीटों पर मुकाबला बेहद दिलचस्प और सघन हो चुका है।

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🔹 गोविंदगंज: चिराग पासवान की प्रतिष्ठा और कांग्रेस की चुनौती
पूर्वी चंपारण जिले की गोविंदगंज विधानसभा सीट पर इस बार मुकाबला बेहद रोचक है।
अभी यहां से भाजपा के सुनील मणि तिवारी विधायक हैं, लेकिन सीट बंटवारे में यह सीट अब एलजेपी (रामविलास) के खाते में चली गई है। इस बार एलजेपी से राजू तिवारी मैदान में हैं, जबकि कांग्रेस ने शशि भूषण राय पर भरोसा जताया है।
तीसरे मोर्चे के रूप में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने कृष्ण कांत मिश्रा को उतारा है, जिससे मुकाबला त्रिकोणीय से बहुकोणीय हो गया है। कुल 8 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं, लेकिन असली जंग इन तीन दलों के बीच ही सिमटती दिख रही है।

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गोविंदगंज सीट का राजनीतिक इतिहास भी उतना ही दिलचस्प है। 2010 में जेडीयू की मीना द्विवेदी, 2015 में एलजेपी के राजू तिवारी, और 2020 में भाजपा के सुनील मणि तिवारी ने जीत दर्ज की थी। यह सीट भाजपा का परंपरागत गढ़ मानी जाती रही है, मगर इस बार समीकरण पूरी तरह बदल चुके हैं।

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चिराग पासवान अपनी पार्टी की ताकत दिखाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। दूसरी ओर कांग्रेस इस सीट को फिर से अपने खेमे में लाने के लिए जातीय और स्थानीय समीकरणों पर दांव खेल रही है। जन सुराज पार्टी का प्रवेश मुकाबले को और अधिक दिलचस्प बना चुका है।

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11 नवंबर को यहां मतदान होना है, और सभी दलों ने मतदाताओं को लुभाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। यह कहना गलत नहीं होगा कि गोविंदगंज की जंग सिर्फ एक सीट नहीं, बल्कि एनडीए के अंदरूनी संतुलन की परीक्षा भी है।

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🔹 गया टाउन: बीजेपी का गढ़ या बदलाव की दस्तक?
राज्य के सबसे प्रतिष्ठित शहरी इलाकों में शुमार गया टाउन विधानसभा सीट पर भी मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। यहां बीजेपी ने एक बार फिर अपने पुराने और भरोसेमंद नेता प्रेम कुमार को टिकट दिया है।
वहीं, कांग्रेस ने फिर से अखौरी ओमकार नाथ को मैदान में उतारा है, जिन्होंने 2020 में प्रेम कुमार को कड़ी टक्कर दी थी।
इस बार जन सुराज पार्टी ने धीरेंद्र अग्रवाल को टिकट देकर इस पारंपरिक मुकाबले में तीसरी धुरी बना दी है।

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गया टाउन की जनता प्रेम कुमार को 1995 से लगातार विधानसभा भेजती आ रही है। वे अब तक सात बार लगातार चुनाव जीत चुके हैं। साल 2020 में उन्होंने 11,898 मतों के अंतर से कांग्रेस को हराया था।
लेकिन इस बार माहौल थोड़ा अलग है—युवाओं और मध्यम वर्ग के बीच जन सुराज पार्टी की पकड़ बढ़ी है, तो कांग्रेस भी परिवर्तन की लहर का दावा कर रही है। हालांकि बीजेपी के संगठनात्मक ढांचे और प्रेम कुमार की मजबूत पकड़ को नज़रअंदाज़ करना आसान नहीं है।
गया टाउन सीट की पहचान अब सिर्फ एक “गढ़” के रूप में नहीं, बल्कि राजनीतिक ध्रुवीकरण के संकेतक के रूप में भी देखी जा रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या प्रेम कुमार आठवीं बार जीत का परचम लहराएंगे या विपक्ष कोई बड़ा उलटफेर करेगा।
🔹 बिहार की सियासी फिज़ा में अब चुनावी गूंज तेज़ हो चुकी है।
गोविंदगंज में चिराग की साख दांव पर है, जबकि गया टाउन में बीजेपी की परंपरा की परीक्षा।
11 नवंबर को इन दोनों सीटों पर होने वाला मतदान न केवल स्थानीय समीकरणों को बल्कि राज्य की बड़ी राजनीति को भी नया रुख दे सकता है।

Editor CP pandey

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