यज्ञ विद्या का केंद्र रही है अयोध्या : प्रोफेसर सीडी सिंह
गोरखपुर (राष्ट्र की परम्परा)। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के अयोध्या अध्ययन केंद्र, प्राचीन इतिहास विभाग द्वारा आयोजित साहित्य एवं पुरातत्व के आलोक में ‘ अयोध्या परिक्षेत्र का इतिहास ‘ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन प्राचीन इतिहास विभाग में संपन्न हुआ। संगोष्ठी भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली तथा अंतर्राष्ट्रीय रामायण एवं वैदिक शोध संस्थान द्वारा वित्त पोषित थी
समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए इतिहासविद, अयोध्या अध्ययन केंद्र के निदेशक, कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो. राजवंत राव ने कहा कि इक्ष्वाकु राजवंशों की परंपरा माता-पिताओं के आज्ञाओं के पालन करने की परंपरा है। अतीत और आधुनिकता इस परंपरा में समाहित है। संस्कृतियों में भी उपसंस्कृतियों का सन्निवेश होता है। उन्होंने बताया कि यह संगोष्ठी अकादमिक गतिविधियों का केंद्र रहा। छत्तीस शोध पत्र पढ़े गए और अयोध्या पर शोध के नए आयाम प्राप्त हुए। अवध क्षेत्र का जब भी अध्ययन किया जाता है तो अयोध्या उसमें एक नए रूप में स्थापित होगी। उसका कारण है कि अयोध्या चार बार उजड़ी और चार बार स्थापित हुई। अयोध्या अदम्य जिजीविषा का जीवंत तक केंद्र है.बारंबार उठ खड़े होने के सर्जनात्मक नैरन्तर्य की सजीव मिसाल है अयोध्या।
प्राचीन इतिहास विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अध्यक्ष प्रोफेसर हर्ष कुमार ने कहा कि अयोध्या इस समय चर्चित नगर बन चुका है। कुंभ के अवसर पर एक सांस्कृतिक त्रिकोण का निर्माण हुआ है जिसमें प्रयागराज, अयोध्या एवं काशी है। अयोध्या में धर्म, दर्शन, इतिहास और संस्कृति एक साथ प्रवाहित होती है। यह नगर भारतीय ज्ञान परंपरा, भारतीय अस्मिता का केंद्र है। अयोध्या से बौद्ध एवं जैन दोनों के अहिंसा के संदेश प्रचारित हुए हैं। भक्ति आंदोलन से इस नगर ने नई आस्था की स्थापना की है। पुराण अतीत काल से आने वाली कथाओं को लेकर चलता है। आख्यानपरक कथाओं से महत्वपूर्ण कसौटियों को इतिहास के विद्यार्थियों को खोजना चाहिए।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक के संस्थापक कुलपति प्रो. सीडी सिंह ने कहा कि राम की कथा इक्ष्वाकु वंश की कथा है। इसी वंश में रहने वाले हरिश्चंद्र ने सत्य को जीत लिया था, मांधाता ने सौ राजसूय यज्ञ किए, दिलीप ने गो सेवा का व्रत लिया। उन्होंने इक्ष्वाकु राजवंश के जीन के अध्ययन की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने अयोध्या को यज्ञ विद्या का केंद्र बताया और जानकी को ब्रह्म विद्या का।
समापन सत्र में अतिथियों का स्वागत प्राचीन इतिहास विभाग की अध्यक्ष प्रोफेसर प्रज्ञा चतुर्वेदी व संचालन सहायक आचार्य डॉ. विनोद कुमार ने किया। संगोष्ठी में विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय के अनेक गणमान्य व शोधार्थी उपस्थित रहे।
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