(प्रस्तुति -नवनीत मिश्र)
संत कबीर नगर(राष्ट्र की परम्परा) उच्च शिक्षा किसी भी राष्ट्र के विकास की धुरी है। यह केवल ज्ञानार्जन का माध्यम नहीं, बल्कि व्यक्तित्व निर्माण और सामाजिक मूल्यों के संरक्षण का भी आधार है। किन्तु वर्तमान समय में यह शिक्षा किस दिशा में अग्रसर है, यह एक गंभीर प्रश्न है।
एक अध्ययन से स्पष्ट हुआ कि अधिकांश युवा वर्तमान शिक्षा प्रणाली से असंतुष्ट हैं। शोध के अनुसार अधिकांश छात्रों का मानना है कि शिक्षा अब केवल परीक्षा पास कराने और डिग्री प्रदान करने तक सीमित हो गई है। युवाओं की दृष्टि में इसका मुख्य उद्देश्य रोजगार प्राप्त करना है, किंतु यह अपेक्षा पूरी नहीं हो रही। अध्ययन में यह भी सामने आया कि बड़ी संख्या में विद्यार्थी शिक्षकों को पारंपरिक और प्रेरणाहीन मानते हैं तथा पाठ्यक्रम को अप्रासंगिक और जीवन से असंबद्ध मानते हैं।
शोध में यह निष्कर्ष निकला कि उच्च शिक्षा व्यवस्था उद्देश्यहीन होती जा रही है। बेरोजगारी की समस्या बढ़ रही है और छात्र वर्ग में असंतोष पनप रहा है। इस स्थिति से उबरने के लिए शिक्षा को व्यावहारिक एवं जीवनपरक बनाना आवश्यक है। साथ ही रोजगार और उपाधि को अलग करना, शिक्षा को रोजगारोन्मुखी स्वरूप देना तथा शिक्षण संस्थानों को धनकेंद्रित प्रवृत्तियों से मुक्त करना समय की मांग है।
स्पष्ट है कि यदि उच्च शिक्षा को युवाओं की अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं बनाया गया तो यह केवल औपचारिक डिग्री वितरण तक सीमित रह जाएगी। अब समय आ गया है कि नीति-निर्माता और शिक्षण संस्थान मिलकर शिक्षा को वास्तव में उपयोगी, जीवनपरक और समाजोपयोगी बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाएँ।
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