25 दिसंबर केवल एक तारीख नहीं, बल्कि वह दर्पण है जिसमें सत्ता, साधना, विज्ञान, संस्कृति और मानवीय संवेदना—सब एक साथ प्रतिबिंबित होते हैं। इस दिन घटित घटनाओं ने कभी साम्राज्यों का अंत लिखा, कभी नई राजनीतिक संरचनाओं की नींव रखी, तो कभी कला-संगीत और आध्यात्मिक चेतना को अमर कर दिया। आइए, 25 दिसंबर की उन ऐतिहासिक घटनाओं पर विस्तार से दृष्टि डालें, जिन्होंने समय की धारा को नया मोड़ दिया।
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2012 – कज़ाकिस्तान में एएन-72 विमान हादसा
दक्षिणी कज़ाकिस्तान के शिमकेंट शहर के पास एन्टोनोव कंपनी का एएन-72 विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस भीषण हादसे में विमान में सवार सभी 27 लोगों की मृत्यु हो गई। यह घटना विमानन सुरक्षा, तकनीकी निगरानी और मौसमीय जोखिमों पर वैश्विक विमर्श का कारण बनी। हादसे ने यह भी रेखांकित किया कि आधुनिक तकनीक के बावजूद मानवीय सतर्कता सर्वोपरि है।
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2007 – जैज़ संगीत के शिखर पुरुष ऑस्कर पीटरसन का निधन
कनाडा के महान जैज़ पियानोवादक और संगीतकार ऑस्कर पीटरसन का निधन संगीत जगत के लिए अपूरणीय क्षति था। उनकी उंगलियों से निकले सुर स्वतंत्रता, संघर्ष और सौंदर्य का संगम थे। उन्होंने जैज़ को वैश्विक पहचान दिलाई और नस्लीय भेदभाव के विरुद्ध कला को सशक्त माध्यम बनाया।
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2005 – डोडो पक्षी का ऐतिहासिक अवशेष
मॉरीशस में 400 वर्ष पूर्व विलुप्त हो चुके डोडो पक्षी के लगभग दो हज़ार वर्ष पुराने अवशेष मिले। यह खोज केवल जीवाश्म विज्ञान की उपलब्धि नहीं थी, बल्कि मानव हस्तक्षेप से विलुप्त होती जैव-विविधता के प्रति चेतावनी भी। डोडो, अब संरक्षण का प्रतीक बन गया।
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2002 – चीन-बांग्लादेश रक्षा समझौता
चीन और बांग्लादेश के बीच रक्षा सहयोग समझौते ने एशियाई भू-राजनीति में नई गतिशीलता पैदा की। इस करार से सैन्य प्रशिक्षण, तकनीकी सहयोग और रणनीतिक संतुलन को बढ़ावा मिला। यह समझौता दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया।
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1998 – रूस और बेलारूस का संघ समझौता
रूस और बेलारूस ने संयुक्त संघ बनाने संबंधी समझौते पर हस्ताक्षर किए। यह कदम सोवियत विघटन के बाद क्षेत्रीय एकीकरण की कोशिशों का प्रतीक था। राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य सहयोग को मजबूत करने का यह प्रयास यूरोपीय राजनीति में विशेष महत्व रखता है।
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1991 – सोवियत संघ का अंत
राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचोव के त्यागपत्र के साथ ही सोवियत संघ का औपचारिक रूप से अंत हो गया। यह घटना 20वीं सदी की सबसे निर्णायक राजनीतिक घटनाओं में गिनी जाती है। शीत युद्ध का समापन, नई राष्ट्र-राज्यों की उत्पत्ति और वैश्विक शक्ति संतुलन में परिवर्तन इसी क्षण से जुड़ा है।
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1977 – चार्ली चैपलिन का निधन
हॉलीवुड के महान अभिनेता, निर्देशक और मानवतावादी चार्ली चैपलिन का निधन सिनेमा जगत के एक युग का अंत था। मूक फिल्मों के माध्यम से उन्होंने सामाजिक असमानता, गरीबी और सत्ता के अहंकार पर गहरी चोट की। उनका चरित्र ‘द ट्रैम्प’ आज भी मानवीय करुणा का प्रतीक है।
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1974 – एयर इंडिया बोइंग 747 का अपहरण
रोम जा रहे एयर इंडिया के बोइंग 747 विमान का अपहरण अंतरराष्ट्रीय विमानन सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती बन गया। इस घटना ने वैश्विक स्तर पर एयरपोर्ट सुरक्षा मानकों को सख्त करने और आतंकवाद-रोधी नीतियों को पुनर्परिभाषित करने की आवश्यकता को उजागर किया।
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1962 – सोवियत परमाणु परीक्षण
सोवियत संघ ने नोवाया जेमल्या क्षेत्र में परमाणु परीक्षण किया। यह शीत युद्ध के दौर में शक्ति प्रदर्शन का हिस्सा था। ऐसे परीक्षणों ने विश्व को परमाणु विनाश की आशंका से रूबरू कराया और अंततः परमाणु अप्रसार समझौतों की राह प्रशस्त की।
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1947 – झनगड़ पर पाकिस्तानी कब्ज़ा
भारत-पाक विभाजन के बाद पाकिस्तानी सेना ने झनगड़ पर कब्ज़ा कर लिया। यह घटना कश्मीर विवाद की जटिलता को और गहरा करती है। सीमाई संघर्षों और मानवीय त्रासदी की यह कड़ी उपमहाद्वीप के इतिहास में आज भी पीड़ा के रूप में दर्ज है।
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1946 – ताइवान का संविधान अंगीकार
ताइवान में संविधान को अंगीकार किया गया, जिसने लोकतांत्रिक संस्थाओं और नागरिक अधिकारों की नींव रखी। यह एशिया में संवैधानिक विकास की महत्वपूर्ण घटना थी, जिसने शासन प्रणाली को स्थिरता और दिशा प्रदान की।
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1924 – कानपुर में कम्युनिस्ट सम्मेलन
पहला अखिल भारतीय कम्युनिस्ट सम्मेलन कानपुर में संपन्न हुआ। इस सम्मेलन ने भारत में श्रमिक आंदोलनों और वैचारिक राजनीति को संगठित रूप दिया। सामाजिक न्याय, समानता और श्रम अधिकारों की बहस यहीं से व्यापक हुई।
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1892 – स्वामी विवेकानंद की कन्याकुमारी साधना
स्वामी विवेकानंद ने कन्याकुमारी की समुद्र-मध्य चट्टान पर तीन दिन की साधना की। यह तपस्या उनके आध्यात्मिक पुनर्जागरण का केंद्र बनी। यहीं से ‘उठो, जागो’ का संदेश जन्मा, जिसने भारतीय चेतना को वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठित किया।
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1771 – शाह आलम द्वितीय का राज्यारोहण
मुग़ल शासक शाह आलम द्वितीय मराठाओं के संरक्षण में दिल्ली के सिंहासन पर बैठे। यह घटना मुग़ल साम्राज्य की निर्भरता और मराठा शक्ति के उत्कर्ष को दर्शाती है। भारतीय राजनीति में यह शक्ति-संतुलन का निर्णायक क्षण था।
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1763 – महाराजा सूरजमल की हत्या
भरतपुर के महान शासक महाराजा सूरजमल की हत्या भारतीय इतिहास की दुखद घटनाओं में से एक है। वे कुशल रणनीतिकार और जनप्रिय राजा थे। उनकी मृत्यु ने जाट शक्ति को गहरा आघात पहुंचाया और उत्तर भारत की राजनीति प्रभावित हुई।
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