गणेश पूजा में नारियल अनिवार्य होता है,क्योंकि यह विघ्नहर्ता के आशीर्वाद का प्रतीक है।
गोंदिया – वैश्विक स्तरपर प्रकृति ने मानव को अनेक उपहार दिए हैं, जिनमें पेड़-पौधे, फल-फूल और जल हमारे अस्तित्व का आधार हैं। इन्हीं उपहारों में नारियल एक ऐसा फल है जिसे “जीवन वृक्ष” कहा जाता है। यह केवल एक खाद्य पदार्थ ही नहीं, बल्कि संपूर्ण जीवन के लिए उपयोगी संसाधन है। नारियल का पेड़, उसका फल,जटा, पत्तियाँ, लकड़ी,सब कुछ मानव सभ्यता को पोषण, आश्रय, औषधि और रोजगार प्रदान करता है।आज मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र यह बातें इसलिए कर रहा हूं क्योंकि नारियल के महत्व को रेखांकित करने के लिए हर वर्ष 2 सितंबर 2025 को “विश्व नारियल दिवस” मनायाजा रहा है। 2009 में एशिया-प्रशांत नारियल समुदाय के गठन के बाद से इस दिवस की शुरुआत हुई। यह संगठन विश्व के उन देशों का प्रतिनिधित्व करता है जहाँ नारियल की खेती बड़े पैमाने पर होती है। आज विश्व नारियल दिवस केवल एक कृषि पर्व नहीं है, बल्कि यह स्वास्थ्य, संस्कृति, पर्यावरण और वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़ा एक आंदोलन बन चुका है।नारियल दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य नारियल उत्पादकों और उपभोक्ताओं को जोड़ना, किसानों को सशक्त बनाना और सतत विकास के मार्ग पर आगे बढ़ना है। एपीसीसी का गठन 2 सितंबर 2009 को इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में हुआ था। इसमें भारत, श्रीलंका, फिलीपींस, इंडोनेशिया, थाईलैंड, वियतनाम, मलेशिया, पापुआ न्यू गिनी और फिजी जैसे देश शामिल हैं।यह संगठन किसानों को आधुनिक खेती तकनीक, फसल संरक्षण, अनुसंधान और अंतरराष्ट्रीय बाजार तक पहुँच प्रदान करने में सहायक है।विश्व स्तरपर लगभग 12 करोड़ किसान परिवार नारियल की खेती पर निर्भर हैं।फिलीपींस, इंडोनेशिया और भारत मिलकर विश्व का लगभग 70 पर्सेंट नारियल उत्पादन करते हैं। नारियल तेल, कोयर, फर्नीचर, सौंदर्य प्रसाधन, औषधियाँ और पेय पदार्थ अरबों डॉलर के वैश्विक व्यापार का हिस्सा हैं, जो दर्शाता है कि नारियल केवल एक स्थानीय फसल नहीं बल्कि एक वैश्विक वस्तु है।
साथियों बात अगर हम भारत में नारियल को केवल एक फल नहीं बल्कि श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक मानने की करें तो, इसे “श्रीफल” कहा जाता है,जिसका अर्थ हैसमृद्धि देने वाला फल।भारतीय धार्मिक परंपराओं में बिना नारियल के कोई भी पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती। गणेश पूजा में नारियल अनिवार्य होता है, क्योंकि यह विघ्नहर्ता के आशीर्वाद का प्रतीक है।दक्षिण भारत में विवाह, गृहप्रवेश और मंदिरों की पूजा में इसका विशेष महत्व है। बौद्ध और जैन धर्म में भी नारियल को पवित्रता और शांति का प्रतीक माना गया है।नारियल के कठोर खोल को अहंकार और वासनाओं का प्रतीक माना जाता है, जिसे फोड़ने पर शुद्ध गूदा और जल प्राप्त होता है। यह आत्मा की पवित्रता और ईश्वर से एकत्व का प्रतीक है।मंदिरों में नारियल चढ़ाने की परंपरा केवल भारत तक सीमित नहीं है। नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड और बाली (इंडोनेशिया) जैसे देशों में भी यह परंपरा देखने को मिलती है। दक्षिण भारत के मंदिरों में नारियल फोड़ना आत्मसमर्पण का प्रतीक है और इससे जुड़े छोटे-छोटे कारोबार हजारों लोगों को रोज़गार भी उपलब्ध कराते हैं। बौद्ध भिक्षु प्रार्थना के समय नारियल जल अर्पित करते हैं। इस प्रकार, नारियल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से लोक और परलोक दोनों से जुड़ा हुआ है और यह कई देशों की आध्यात्मिक परंपराओं में गहराई से समाया हुआ है।
साथियों बात अगर हम नारियल का वृक्ष “कल्पवृक्ष” कहलानें की करें तो,क्योंकि इसका कोई भी हिस्सा बेकार नहीं जाता। फल से हमें जल और गूदा मिलता है, जो पोषण और ऊर्जा का स्रोत है। गूदे से निकाला गया नारियल तेल बालों, त्वचा और भोजन के लिए औषधि के रूप में उपयोग होता है।जटा से रस्सी, चटाई, कालीन, ब्रश और गद्दे बनाए जाते हैं। पत्तियों का प्रयोग झोपड़ी, टोकरियाँ और सजावटी वस्तुएँ बनाने में होता है, जबकि तना फर्नीचर, पुल और नाव बनाने के लिए उपयुक्त है। जड़ें औषधि और रंगाई में प्रयोग की जाती हैं। यही कारण है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नारियल को “ट्री ऑफ़ लाइफ” यानें जीवन का वृक्ष कहा जाता है।
साथियों बात अगर हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नारियल को देखने की करें तो विज्ञान की दृष्टि से भी नारियल एक “नेचुरल सुपरफॉड” है।इसमें विटामिन बी,सी और ई प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। पोटेशियम,कैल्शियम,मैग्नीशियम और आयरन जैसे खनिज शरीर को ऊर्जा और मजबूती प्रदान करते हैं। इसमें प्रोटीन और फाइबर भी अच्छी मात्रा में उपलब्ध हैं।नारियल जल को प्राकृतिक और्स कहा जाता है, जो शरीर को हाइड्रेट करता है और गर्मी या बीमारी के दौरान ऊर्जा देता है। हृदय और किडनी रोगों में यह विशेष रूप से लाभकारी है। नारियल तेल एंटीवायरल और एंटीबैक्टीरियल गुणों से युक्त है और मधुमेह तथा रक्तचाप नियंत्रित करने में सहायक है।आधुनिक शोध बताते हैं कि नारियल का प्रयोग वजन घटाने, डिटॉक्स और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए किया जा सकता है। यही कारण है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन और आयुर्वेद दोनों ने नारियल को स्वास्थ्य के लिए अमृत समान माना है।
साथियों बात अगर हम नारियल वृक्ष की आयु और उत्पादनक्षमता के लिए भी अद्वितीय होने की करें तो,यह 60 से 80 फीट तक ऊँचा होता है और लगभग 70 से 80 वर्षों तक जीवित रहता है। करीब 15 वर्षों के बाद इसमें नियमित रूप से फल लगना शुरू होता है और एक पेड़ अपनी आयु में हजारों नारियल देता है। यह दीर्घायु वृक्ष किसानों को पीढ़ियों तक आय देता है और उन्हें स्थिरता प्रदान करता है। इसी कारण इसे “गरीब का वृक्ष” (पुवर मैन्स ट्री) कहा जाता है क्योंकि यह हर वर्ग को लाभ पहुँचाता है।
साथियों बात अगर हम नारियल उद्योग वैश्विक मूल्य श्रृंखला का हिस्सा होने की करेंतो,फिलीपींस नारियल तेल का सबसे बड़ा निर्यातक है, जबकि इंडोनेशिया उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान पर है। भारत तीसरे स्थान पर है और घरेलू खपत में सबसे आगे है। श्रीलंका कोयर उद्योग के लिए प्रसिद्ध है। विश्व नारियल बाजार का आकार 2024 में लगभग 12 अरब डॉलर था और 2030 तक इसके 20 अरब डॉलर तक पहुँचने की संभावना है।अमेरिका यूरोप और जापान में नारियल पानी और ऑर्गेनिक नारियल तेल की मांग तेजी से बढ़ रही है, जिससे यह उद्योग और अधिक वैश्विक बनताजा रहाहै।
साथियों बात अगर हम नारियल वृक्ष केवल भोजन और व्यापार ही नहीं, बल्कि पर्यावरण और समाज के लिए भी महत्वपूर्ण होने की करें तो,यह समुद्र किनारे मिट्टी का क्षरण रोकते हैं और तटीय सुरक्षा प्रदान करते हैं। एक नारियल वृक्ष सालाना लगभग 30–35 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है, जिससे पर्यावरण को शुद्ध बनाने में मदद मिलती है। यह विश्वभर में लगभग 6 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से रोज़गार देता है। गरीब किसानों की जीवनरेखा कहे जाने वाले इस वृक्ष ने करोड़ों लोगों को स्थायी जीविका दी है।फिर भी नारियल खेती पर जलवायु परिवर्तन का गहरा प्रभाव पड़ रहा है। समुद्र स्तर में वृद्धि से तटीय नारियल बागान डूबने लगे हैं। सूखा और अनियमित वर्षा से उत्पादन घट रहा है। कीट और रोगों की संख्या बढ़ी है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए एफएओ और एपीसीसी मिलकर नई किस्मों पर शोध कर रहे हैं।भारत ने “केंद्रीय नारियल अनुसंधान संस्थान” बनाया है, जबकि श्रीलंका और फिलीपींस ने कोयर और नारियल तेल आधारित उद्योगों में नवाचार को बढ़ावा दिया है।विश्व नारियल दिवस हमें यह याद दिलाता है कि नारियल केवल एक फल नहीं बल्कि भविष्य की सतत जीवन शैली का आधार है। ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देकर, किसानों को तकनीक और बाजार तक पहुँच प्रदान करके और नारियल आधारित ग्रीन उद्योग विकसित करके हम इस वृक्ष की क्षमता को और अधिक बढ़ा सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करना भी आवश्यक है, ताकि छोटे किसान भी वैश्विक बाजार से लाभान्वित हो सकें।
साथियों बात अगर हम नारियल का वृक्ष केवल एक पौधा नहीं, बल्कि मानव सभ्यता का सहारा होने की करें तो,यह धर्म में श्रद्धा, संस्कृति में पहचान, विज्ञान में औषधि और अर्थव्यवस्था में उद्योग का आधार है। विश्व नारियल दिवस 2025 हमें यह संदेश देता है कि हमें इस “जीवन वृक्ष” की रक्षा करनी है और इसे मानवता की समृद्धि के लिए आगे बढ़ाना है। यदि विश्वभर के देश मिलकर नारियल उत्पादन, अनुसंधान और सतत विकास की दिशा में काम करें तो यह वृक्ष आने वाली पीढ़ियों को भी अमृत प्रदान करता रहेगा।नारियल केवल एक फल नहीं, बल्कि संपूर्ण जीवन का प्रतीक है। भारतीय संस्कृति में यह समर्पण और पवित्रता का संदेश देता है, विज्ञान में यह स्वास्थ्य का स्रोत है और पर्यावरण के लिए यह स्थिरता का दूत है। विश्व नारियल दिवस हमें यह याद दिलाता है कि प्रकृति ने जो यह अद्भुत उपहार दिया है, उसकी रक्षा करना और उसका सतत उपयोग करना हमारी जिम्मेदारी है।आज आवश्यकता है कि हम नारियल उत्पादन बढ़ाने,किसानों को तकनीकी सहयोग देने और इसके औषधीय व पोषण संबंधी गुणों को अधिकाधिक जन-जन तक पहुँचाने का संकल्प लें। तभी नारियल वास्तव में मानव जीवन को समृद्ध और स्वस्थ बनाने में अपनी पूर्ण भूमिका निभा सकेगा।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि विश्व नारियल दिवस केवल एक कृषि पर्व नहीं है, बल्कि यह स्वास्थ्य, संस्कृति, पर्यावरण और वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़ा एक आंदोलन बन चुका है।
-संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र 9226229318
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