“विघ्नों के पार: जब गणेश सिखाते हैं समत्व का धर्म”

🕉️ “ज्ञान का प्रकाश, करुणा की धारा और धैर्य का पात्र — जब जीवन स्वयं गणेश बन जाता है”
शास्त्रोक्त गणेश कथा

भूमिका: जब जीवन ही पूजा बन जाए
“ज्ञानं दीपः, करुणा ईंधनं, धैर्यः पात्रम्” — यह सूत्र केवल एक काव्यात्मक पंक्ति नहीं, बल्कि संपूर्ण भारतीय दर्शन का सार है। जब मनुष्य अपने जीवन को ज्ञान के दीप से प्रकाशित करता है, करुणा को ईंधन बनाता है और धैर्य को पात्र, तब उसके जीवन में गणेश केवल पूज्य नहीं रहते, साक्षात् जीवन-मार्गदर्शक बन जाते हैं।
पिछले एपिसोड में हमने जाना कि कैसे प्रत्येक श्वास पूजा बन सकती है। अब एपिसोड–7 में हम प्रवेश करते हैं उस शास्त्रोक्त कथा में, जहाँ गणेश केवल विघ्नहर्ता नहीं, बल्कि विवेक, समता और धर्म के प्रतीक बनकर प्रकट होते हैं।

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शास्त्रोक्त कथा: गणेश और ‘समत्व का रहस्य’
ब्रह्मवैवर्त पुराण और मुद्गल पुराण में वर्णित एक गूढ़ कथा के अनुसार, एक बार देवताओं और असुरों के मध्य यह विवाद उत्पन्न हुआ कि संसार में सबसे बड़ा बल कौन-सा है — शक्ति, बुद्धि या भक्ति?
इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए सभी ब्रह्मलोक पहुँचे। ब्रह्मा जी ने मुस्कराकर कहा—
“जिसने समत्व को साध लिया, वही सर्वश्रेष्ठ है।”

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परंतु देव और असुर इस उत्तर से संतुष्ट नहीं हुए। तब ब्रह्मा जी ने गणेश का स्मरण किया।
गणेश का प्राकट्य
गणेश प्रकट हुए—
एक दंत टूटा हुआ,
पेट में ब्रह्मांड समाए,
और नेत्रों में करुणा की अथाह गहराई।

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गणेश ने कहा—
“जो सुख में अहंकार न करे और दुःख में टूटे नहीं — वही ज्ञानी है।
जो अपने और पराए में भेद न करे — वही करुणावान है।
और जो समय की प्रतीक्षा कर सके — वही धैर्यवान है।”
उन्होंने देवताओं और असुरों को एक ही फल दिया—मोदक।
किसी ने स्वाद को मीठा कहा, किसी ने सामान्य।
तब गणेश मुस्कराए और बोले—
“फल वही था, भेद केवल मन का था।”
यही समत्व का रहस्य है।

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गणेश जी की शास्त्रोक्त महिमा: क्यों वे सबसे पहले पूजे जाते हैं?
स्कंद पुराण में कहा गया है—
“न विघ्नं तस्य कार्येषु यः स्मरेत् गणनायकम्।”
अर्थात जो कार्य के आरंभ में गणनायक का स्मरण करता है, उसके मार्ग के विघ्न स्वतः शांत हो जाते हैं।
गणेश का अग्रपूजन केवल परंपरा नहीं, बल्कि मानसिक अनुशासन है।
वे हमें सिखाते हैं कि—
बड़े कान: अधिक सुनो, कम बोलो
छोटी आँखें: सूक्ष्म को देखो
टूटा दंत: अहंकार का त्याग
विशाल पेट: जीवन के अनुभवों को पचाने की क्षमता
गणेश और समानता का दर्शन
गणेश का वाहन मूषक (चूहा) है — जो समाज में तुच्छ समझा जाता है।
यह शास्त्रोक्त संकेत है कि ईश्वर किसी को छोटा या बड़ा नहीं मानता।
जो स्वयं को सबसे छोटा समझ ले, वही सबसे बड़ा बनता है।

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आज के समाज में जब भेद, वर्ग और अहंकार बढ़ रहा है, गणेश का यह संदेश अत्यंत प्रासंगिक है—
“सब समान हैं, भेद केवल दृष्टि का है।”
गणेश कथा से जीवन शिक्षा
एपिसोड–7 की यह कथा हमें तीन अमूल्य सूत्र देती है—
1️⃣ ज्ञान बिना करुणा अधूरा है
केवल बुद्धिमान होना पर्याप्त नहीं, जब तक उसमें करुणा न हो।
2️⃣ करुणा बिना धैर्य दिशाहीन है
भावना तभी फलती है, जब उसे धैर्य का आधार मिले।
3️⃣ धैर्य बिना ज्ञान बोझ बन जाता है
जो समय की प्रतीक्षा नहीं कर सकता, वह सत्य को भी खो देता है।
आज के युग में गणेश की प्रासंगिकता
आज का मनुष्य तेज़ है, पर स्थिर नहीं।
सूचित है, पर संवेदनशील नहीं।

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यहीं गणेश हमें रोककर कहते हैं—
“पहले भीतर के विघ्न हटाओ, बाहर के अपने आप हट जाएंगे।”
जब हम गणेश को केवल मूर्ति नहीं, जीवन दर्शन मान लेते हैं, तब हर दिन गणेश चतुर्थी बन जाता है और हर श्वास पूजा।
गणेश बाहर नहीं, भीतर हैं
गणेश कोई दूरस्थ देवता नहीं,
वे हमारे विवेक, करुणा और धैर्य का समन्वय हैं।
जब यह तीनों जागृत हो जाते हैं—
तब जीवन स्वयं एक शास्त्रोक्त यज्ञ बन जाता है।

Editor CP pandey

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