(ओमकार मणि त्रिपाठी )
2 अक्टूबर पर करोड़ों खर्च कर गांधी स्मृति कार्यक्रम आयोजित होते हैं, परंतु डिजिटल मंचों पर गांधीजी को गाली देने वालों पर कब होगी सख्त कार्रवाई? क्या अब समय आ गया है कि पक्ष-विपक्ष मिलकर शपथ लें—‘गांधी का अपमान नहीं सहेंगे’?
परिचय
महात्मा गांधी—जिन्हें राष्ट्रपिता कहा जाता है, उनके नाम पर 2 अक्टूबर को हर वर्ष पूरा देश श्रद्धा अर्पित करता है। सरकारी खर्च से लेकर विपक्षी दलों की सभाओं तक, गांधी स्मरण के कार्यक्रमों पर करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं। परंतु विडंबना यह है कि उसी दिन और साल भर भरपूर सक्रिय रहने वाली “व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी” पर गांधीजी के खिलाफ गाली-गलौज, अपमानजनक संदेश और फर्जी कहानियाँ परोसी जाती हैं।
क्या गांधी की जयंती केवल राजनीतिक रस्मअदायगी बनकर रह जाएगी या वास्तव में सरकार और विपक्ष मिलकर जनता को संदेश देंगे कि गांधी का अपमान न शब्दों में होगा, न सोशल मीडिया पर? यही सवाल इस वर्ष की गांधी जयंती पर सबसे बड़ा विमर्श है।
गांधी और आज का समाज :
गांधीजी ने सत्य, अहिंसा और सहिष्णुता के मार्ग पर चलते हुए पूरी दुनिया को संदेश दिया था। उनका जीवन संघर्ष सादगी का प्रतीक था। आज की पीढ़ी के लिए गांधी सिर्फ किताबों, सिक्कों और सरकारी भाषणों में सीमित हो गए हैं।
जहां एक ओर स्कूलों-कॉलेजों में गांधी के विचारों पर निबंध प्रतियोगिताएँ होती हैं, वहीं दूसरी ओर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उन्हें अपमानित करने वाले पोस्ट ट्रेंड करने लगते हैं।
यह दोहरा चरित्र हमारे समाज और राजनीति दोनों पर सवाल खड़ा करता है।
व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी और गांधी विरोधी नैरेटिव
- फर्जी किस्से और अफवाहें:
गांधीजी के निजी जीवन को तोड़-मरोड़कर पेश करने वाले संदेश नियमित रूप से फॉरवर्ड किए जाते हैं। - राजनीतिक स्वार्थ:
कुछ संगठन और समूह गांधी को नीचा दिखाकर अपने वैचारिक एजेंडे को मजबूत करने की कोशिश करते हैं। - नफ़रत का कारोबार:
डिजिटल मंचों पर गांधी-विरोधी कंटेंट से लाइक्स, शेयर और वोटों की राजनीति चमकाई जाती है।
सरकार की भूमिका
हर वर्ष 2 अक्टूबर को सरकारी स्तर पर क्लीन इंडिया मिशन से लेकर प्रार्थना सभाओं तक बड़े-बड़े आयोजन होते हैं।
इन पर करोड़ों रुपये खर्च होते हैं, लेकिन डिजिटल प्लेटफॉर्म पर गांधी विरोध को रोकने के लिए नीतिगत स्तर पर कोई ठोस कदम नहीं दिखता।
यदि सरकार सचमुच गांधी का सम्मान चाहती है तो IT एक्ट और सोशल मीडिया रेगुलेशन के तहत गांधी विरोधी कंटेंट फैलाने वालों पर कार्यवाही करनी होगी।
विपक्ष की जिम्मेदारी
विपक्ष भी गांधी को अपना नैतिक पूंजी मानता है, परंतु गांधी विरोध पर उसका रवैया भी सिर्फ बयानबाजी तक सीमित है।
विपक्ष को चाहिए कि संसद से लेकर सड़कों तक सरकार पर दबाव बनाए कि गांधी का अपमान रोकने हेतु ठोस कानून बने।
सिर्फ राजनीति नहीं, बल्कि गांधीवादी मूल्यों को अपनाकर जनता के बीच जागरूकता अभियान चलाए।
शपथ का प्रस्ताव : “गांधी का अपमान नहीं सहेंगे”
कल्पना कीजिए यदि इस बार गांधी जयंती पर सरकार और विपक्ष एक साथ मंच साझा करें और पूरे देश को संदेश दें कि—
👉 “गांधी के प्रति न मन में जहर रखेंगे, न सोशल मीडिया पर उगलेंगे।”
👉 “आज से गांधी का अपमान करने वाले पर सख्त कार्यवाही होगी।”
तो यह न केवल ऐतिहासिक कदम होगा बल्कि डिजिटल पीढ़ी के लिए भी गांधी की प्रासंगिकता बढ़ाएगा।
सामाजिक स्तर पर पहल
स्कूलों-कॉलेजों में “गांधी का डिजिटल सम्मान” अभियान चलाया जा सकता है।
नागरिक समाज, एनजीओ और बुद्धिजीवी मिलकर फर्जी नैरेटिव का प्रतिकार करें।
माता-पिता और शिक्षक बच्चों को गांधी के जीवन की वास्तविक कहानियाँ सुनाएं ताकि वे नफरत भरे कंटेंट का शिकार न हों।
मीडिया की भूमिका
मीडिया को भी जिम्मेदारी निभानी होगी।
गांधी जयंती पर सिर्फ सरकारी आयोजन दिखाने से काम नहीं चलेगा।
डिजिटल प्लेटफॉर्म पर गांधी विरोध के असली चेहरे को उजागर करना और जनता को सही तथ्य बताना मीडिया का दायित्व है।
गांधी जयंती पर करोड़ों रुपये खर्च कर फूल-मालाएँ चढ़ाना आसान है, लेकिन गांधी के सम्मान की रक्षा करना मुश्किल। आज जरूरत है कि सरकार, विपक्ष और समाज मिलकर यह शपथ लें कि—
गांधी को गाली देने वालों पर न सिर्फ नैतिक दबाव होगा बल्कि कानूनी कार्रवाई भी होगी।
व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी पर फैल रहे ज़हर को खत्म कर गांधी के सत्य और अहिंसा का संदेश ही आगे बढ़ेगा।
यह कदम न केवल गांधी की विरासत को बचाएगा बल्कि भारत के लोकतांत्रिक चरित्र को भी मजबूत करेगा। - ये भी पढ़ें –पद्म विभूषण पंडित छन्नूलाल मिश्र का निधन: शास्त्रीय संगीत जगत में शोक
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