श्रीलंका में राजनीतिक बदलाव कहीं भारत के लिए खतरे की घंटी तो नहीं?

श्रीलंका में राजनीतिक बदलाव कहीं भारत के लिए खतरे की घंटी तो नहीं। चीन के लिए, जे.वी.पी. के नेतृत्व वाला श्रीलंका उसके ‘मोतियों की माला’ में एक और रत्न होगा, जो क्षेत्र पर उसकी पकड़ को मजबूत करेगा। श्रीलंका दे सकता है टेंशन, भारत करे तो क्या? चीन की ओर झुकाव से श्रीलंका कर्ज के जाल में फंस गया। नतीजा श्रीलंका के लिए विनाशकारी था और इस प्रक्रिया ने भारत के सुरक्षा हितों को गंभीर रूप से खतरे में डाल दिया। अब सवाल और भी गंभीर हो गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि एक मार्क्सवादी-समर्थक पार्टी श्रीलंका की सत्ता में काबिज है। ऐसे में भारत को अपने एक्शन के बारे में आशंकित होने का हर कारण है।

-प्रियंका सौरभ

श्रीलंका में हालिया राजनीतिक बदलावों का भारत पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता एवं सुरक्षा पर असर पड़ेगा। चूँकि भारत एक प्रमुख क्षेत्रीय शक्ति है, इसलिए उसे इन उभरती गतिशीलता के अनुकूल होने एवं अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए अपनी राजनयिक रणनीति का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए। इससे पहले, कोलंबो में दक्षिणपंथी सरकारों ने बुनियादी ढांचे में पर्याप्त निवेश के बदले में चीन की ओर झुकाव की कोशिशें की। ये उनके लिए गले की फांस बन गईं। इनमें से अधिकांश कर्ज के जाल में फंस गए। नतीजा श्रीलंका के लिए विनाशकारी था और इस प्रक्रिया ने भारत के सुरक्षा हितों को गंभीर रूप से खतरे में डाल दिया। अब सवाल और भी गंभीर हो गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि एक मार्क्सवादी-समर्थक पार्टी श्रीलंका की सत्ता में काबिज है। ऐसे में भारत को अपने एक्शन के बारे में आशंकित होने का हर कारण है। भारत को सतर्क रहना चाहिए और इस बढ़ते चीनी प्रभाव को संतुलित करने के लिए क्षेत्र में अपनी रणनीतियों का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए, साथ ही यह भी देखना चाहिए कि जे.वी.पी. श्रीलंका में किस तरह का शासन और अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन लाएगा।

नेशनल पीपुल्स पावर का उदय आईएमएफ के चल रहे बेलआउट कार्यक्रमों और श्रीलंका में प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय निवेशों को खतरे में डाल सकता है, जिससे क्षेत्र में अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है। आज, दिसानायके के नेतृत्व में जे.वी.पी. का पुनरुत्थान महज एक राजनीतिक जीत नहीं है; यह उस अंधराष्ट्रवादी चरित्र की वापसी का संकेत है जिसने कभी श्रीलंका की एकता को खतरा पैदा किया था। जे.वी.पी. के उदय का सबसे चिंताजनक पहलू चीन की भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के साथ इसका संभावित तालमेल है। श्रीलंका लंबे समय से चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ रणनीति का हिस्सा रहा है। चीन समर्थित बुनियादी ढांचा परियोजनाओं और राजनीतिक सांझेदारियों की एक श्रृंखला, जिसका उद्देश्य भारत को घेरना और हिंद महासागर में अपने समुद्री प्रभुत्व को सुरक्षित करना है। कोलंबो बंदरगाह परियोजना एवं अडानी सौर ऊर्जा पहल जैसी परियोजनाओं के रद्द होने का खतरा है, जिसका सीधा असर भारतीय आर्थिक हितों पर पड़ रहा है। श्रीलंका के राजनीतिक रुख में बदलाव से चीन इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ा सकता है, जिससे भारत के रणनीतिक हितों को खतरा उत्पन्न हो सकता है। श्रीलंका में आंतरिक राजनीतिक परिवर्तनों के कारण उत्पन्न अस्थिरता फैल सकती है, जिससे भारत के लिए महत्वपूर्ण समुद्री व्यापार मार्गों सहित क्षेत्रीय सुरक्षा प्रभावित हो सकती है।

यदि श्रीलंका को राजनीतिक अस्थिरता का सामना करना पड़ता है, तो इससे हिंद महासागर में सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है, जो भारत के व्यापार एवं रणनीतिक हितों के लिए महत्वपूर्ण है। दिसानायके की नीतियां श्रीलंकाई तमिल समुदाय एवं उनके अधिकारों की वकालत करने में भारत की भूमिका को प्रभावित कर सकती हैं, जिससे तनाव में फिर से वृद्धि हो सकती है। तमिल अधिकारों पर कोई भी वापसी और जातीय कट्टरता की वापसी भारतीय नीति निर्माताओं को अच्छी नहीं लगेगी। ऐसा परिदृश्य भारत और श्रीलंका के बीच, विशेष रूप से दक्षिणी राज्यों में तनाव को बढ़ा सकता है और इस क्षेत्र को और अस्थिर कर सकता है। मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों में चीन के बढ़ते प्रभाव के कारण इस क्षेत्र में भारत की स्थिति पहले ही कमजोर हो चुकी है। हिंद महासागर में चीनी शक्ति का प्रतिकार करने के भारत के प्रयासों में श्रीलंका एक महत्वपूर्ण चौकी रहा है। जे.वी.पी. की जीत और चीन की ओर उसका संभावित झुकाव इन प्रयासों को गंभीर रूप से कमजोर कर देगा, जिससे भूटान दक्षिण एशिया के उन कुछ बचे हुए देशों में से एक रह जाएगा जहां भारत अभी भी चीन पर रणनीतिक बढ़त रखता है।

भारत को श्रीलंका के प्रति अपने कूटनीतिक दृष्टिकोण में सक्रिय कदम उठाने चाहिए. भारत को श्रीलंका की अर्थव्यवस्था का समर्थन जारी रखना चाहिए, यह सुनिश्चित करते हुए कि बुनियादी ढाँचे के विकास जैसी परियोजनाओं से दोनों देशों को लाभ होगा एवं क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा मिलेगा। भारत सौर ऊर्जा जैसी नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं पर अपना सहयोग बढ़ा सकता है। बाहरी खतरों से हिंद महासागर क्षेत्र की सुरक्षा के लिए श्रीलंका के साथ समुद्री सुरक्षा सहयोग को मजबूत करना आवश्यक है। संयुक्त नौसैनिक अभ्यास एवं समुद्री खुफिया जानकारी साझा करने से हिंद महासागर में बेहतर समन्वय सुनिश्चित होगा। भारत को श्रीलंका को किसी भी एकल संरेखण से बचते हुए, भारत एवं चीन के बीच संतुलित दृष्टिकोण बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। राजनयिक संवाद जो भारत के निवेश के लाभों को उजागर करते हैं, चीन की ओर पूर्ण बदलाव को रोक सकते हैं।सांस्कृतिक एवं शैक्षिक आदान-प्रदान को मजबूत करने से दोनों देशों के बीच सद्भावना को बढ़ावा मिलेगा तथा सार्वजनिक कूटनीति में वृद्धि होगी।

भारत श्रीलंकाई युवाओं के लिए छात्र छात्रवृत्ति एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम बढ़ा सकता है, जिससे युवा पीढ़ी के साथ मजबूत संबंध बन सकते हैं। भारत को श्रीलंका में चीनी निवेशों पर बारीकी से नज़र रखनी चाहिए एवं उन्हें रणनीतिक भारतीय निवेशों के साथ संतुलित करना चाहिए। बंदरगाहों एवं हवाई अड्डों जैसे महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे में भारतीय निवेश बढ़ाने से यह सुनिश्चित होगा कि भारत अपना प्रभाव बनाए रखेगा। क्षेत्रीय स्थिरता एवं सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, भारत को एक बहुआयामी राजनयिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए जो आर्थिक सहयोग, क्षेत्रीय सुरक्षा तथा सांस्कृतिक जुड़ाव को प्राथमिकता दे। इन पहलुओं पर सक्रिय रूप से ध्यान देकर, भारत बढ़ते बाह्य दबावों के समक्ष अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए श्रीलंका में अपना प्रभाव मजबूत कर सकता है।

-प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,

Editor CP pandey

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