गोरखपुर (राष्ट्र की परम्परा)। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी एवं आधुनिक भारतीय भाषा तथा पत्रकारिता विभाग में महाकवि सुब्रह्मण्य भारती की जयंती पर संवाद और काव्यपाठ कार्यक्रम आयोजित हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विभागाध्यक्ष प्रो. कमलेश कुमार गुप्त ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा धर्म, दर्शन और विज्ञान का अद्वितीय समन्वय है। उन्होंने कहा कि इस परम्परा ने भारतीय भाषाओं के उद्भव, विकास और परस्पर मेलजोल में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
‘भारतीय ज्ञान परम्परा और भारतीय भाषाएं’ विषयक इस आयोजन में प्रतिभागी ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यमों से जुड़े। ‘भाषा अनेक, भाव अनेक’ थीम पर आकांक्षा, अलीशा, तनु और हर्षिता ने ‘वैष्णव जन’ का गायन किया, जबकि अवनीश मौर्य ने ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ प्रस्तुत किया। प्रतीका पाण्डेय, हरिश्चंद्र, अनीशा, श्वेता सिंह विशेन, बृजेश दूबे, आकार, कंचन और दीपक यादव ने विभिन्न भारतीय भाषाओं की अनुदित कविताओं का पाठ किया।
ऑनलाइन मोड में संजीव कुमार (हिन्दी), अंजला बोरा (बोडो), रजनी नौटियाल (कुमाऊंनी), शरद तालुकदार और उज्ज्वल अरुण (असमिया) ने अपनी अभिव्यक्तियाँ रखीं।
विमर्श सत्र में अंग्रेजी विभाग के डॉ. बृजेश कुमार ने कहा कि भाषा और भाव गहराई से जुड़े हैं तथा मातृभाषा से दूरी कई बार मनोवैज्ञानिक दुविधा पैदा करती है। संस्कृत विभाग के डॉ. सूर्यकांत त्रिपाठी ने शब्द को भारतीय ज्ञान परम्परा का मूल बताते हुए भाषा-शुद्धिकरण पर जोर दिया।
उर्दू विभाग के डॉ. महबूब हसन ने अंग्रेजी के वर्चस्व पर चिंता जताते हुए कहा कि हिन्दी-उर्दू में केवल लिपि का अंतर है, इसलिए इनके निकट संबंध व्यवहार में भी दिखने चाहिए। हिन्दी विभाग के प्रो. विमलेश मिश्र ने कहा कि भारतीय भाषाओं के सामने गंभीर संकट है, इसलिए सभी भाषाओं के सम्मान और संरक्षण की आवश्यकता है।
आयोजन के संयोजक प्रो. राजेश कुमार मल्ल ने कहा कि भाषा, साहित्य और ज्ञान भारतीय परम्परा के मूल तत्व हैं। संचालन डॉ. अभिषेक शुक्ल ने किया और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सुनील कुमार द्वारा दिया गया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं और शिक्षक मौजूद रहे।
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