नई दिल्ली (राष्ट्र की परम्परा डेस्क)भारत और कनाडा के बीच बीते एक वर्ष से ठंडे पड़े संबंधों में अब धीरे-धीरे गर्माहट लौटती दिखाई दे रही है। खालिस्तान समर्थक तत्वों की गतिविधियों और एक कनाडाई नागरिक की हत्या के बाद उपजे तनाव ने जहां दोनों देशों के रिश्तों को ठहराव की स्थिति में पहुँचा दिया था, वहीं अब कनाडा की नई विदेश मंत्री अनीता आनंद की भारत यात्रा ने संवाद के नए द्वार खोल दिए हैं।
नई दिल्ली में हुई इस उच्चस्तरीय वार्ता के दौरान भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर और कनाडा की विदेश मंत्री आनंद के बीच कई मुद्दों पर सकारात्मक चर्चा हुई। यह केवल एक औपचारिक यात्रा नहीं, बल्कि दोनों लोकतांत्रिक देशों की राजनयिक परिपक्वता और संवाद की इच्छाशक्ति का प्रतीक है, जिसने रिश्तों को पुनः पटरी पर लाने का अवसर प्रदान किया है।
जयशंकर ने बैठक में इस बात पर जोर दिया कि वर्तमान अस्थिर वैश्विक व्यवस्था में भारत और कनाडा जैसी लोकतांत्रिक अर्थव्यवस्थाओं को “जोखिम-मुक्त वैश्विक अर्थव्यवस्था” की दिशा में गहन साझेदारी करनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि दोनों देशों की उपस्थिति G20 और कॉमनवेल्थ जैसे मंचों पर उल्लेखनीय रही है, और अब समय आ गया है कि इस पारंपरिक सहयोग को “व्यावहारिक साझेदारी” में बदला जाए।
अनीता आनंद की यह यात्रा भारत-कनाडा संबंधों के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह संकेत देती है कि ओटावा अब नई दिल्ली के साथ टकराव नहीं, बल्कि तालमेल और विश्वास के मार्ग पर आगे बढ़ना चाहता है।
दोनों देशों के बीच हुई वार्ता में व्यापार, निवेश, कृषि, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, परमाणु ऊर्जा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), महत्वपूर्ण खनिज (Critical Minerals) और स्वच्छ ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ाने की सहमति बनी। विशेष रूप से “क्रिटिकल मिनरल्स साझेदारी” भविष्य में भारत की ऊर्जा सुरक्षा और इंडो-पैसिफिक रणनीति को मजबूती प्रदान करेगी।
भारत और कनाडा दोनों ही “साझा लोकतांत्रिक मूल्यों” और “विविधता की भावना” पर आधारित समाज हैं। जयशंकर ने इसे रेखांकित करते हुए कहा कि, “जब हम कनाडा को देखते हैं, तो हमें एक ऐसी अर्थव्यवस्था दिखती है जो हमारी पूरक है, और एक समाज जो हमारे मूल्यों को साझा करता है।” यह वक्तव्य केवल कूटनीतिक शिष्टाचार नहीं, बल्कि भविष्य की साझेदारी के प्रति भारत के आत्मविश्वास का संकेत है।
इसके साथ ही, दोनों देशों ने अपने-अपने नए उच्चायुक्तों की नियुक्ति कर यह सुनिश्चित किया है कि संवाद की निरंतरता बनी रहे। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों, व्यापार मंत्रियों और विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच चल रही निरंतर बैठकों से यह स्पष्ट है कि दोनों देश विश्वास बहाली की प्रक्रिया को गंभीरता से आगे बढ़ा रहे हैं।
हालाँकि, चुनौतियाँ अब भी मौजूद हैं। भारत के लिए खालिस्तान समर्थक गतिविधियाँ एक प्रमुख सुरक्षा चिंता बनी हुई हैं, और इस विषय पर कनाडा की अस्पष्ट नीति अब भी सवाल खड़े करती है। बावजूद इसके, अनीता आनंद की यात्रा का प्रमुख संदेश यही है कि मतभेदों को संवाद के ज़रिए सुलझाने का संकल्प अब दोनों देशों में दृढ़ होता जा रहा है।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य में यह सहयोग ऐसे समय में उभर रहा है जब विश्व अर्थव्यवस्था “फ्रेंडशोरिंग” और “रिस्क डाइवर्सिफिकेशन” की ओर अग्रसर है। चीन पर निर्भरता घटाने, आपूर्ति श्रृंखला को मज़बूत करने और इंडो-पैसिफिक में शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए भारत और कनाडा जैसे देशों की भूमिका अब निर्णायक मानी जा रही है।
इसलिए कहा जा सकता है कि जयशंकर–आनंद वार्ता केवल द्विपक्षीय चर्चा नहीं, बल्कि एक वैश्विक संदेश है — कि लोकतांत्रिक देशों के बीच संवाद और परस्पर सम्मान ही स्थायी पुल बन सकता है। अनीता आनंद की यह यात्रा इस “नए आरंभ” का प्रतीक है, जो भारत–कनाडा संबंधों को अतीत की कड़वाहट से निकालकर परिपक्व साझेदारी की नई दिशा दे सकती है।
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