सरकारी स्कूलों में गिरते शिक्षा स्तर के लिए कौन जिम्मेदार? शिक्षक या सरकार: ‘शिक्षक पर बढ़ता गैर-शैक्षणिक बोझ’ बना राष्ट्रीय बहस
भारत में सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता लगातार सवालों के घेरे में है। हर बार जब परिणाम गिरते हैं, बच्चों की बुनियादी सीखने की क्षमता कम पाई जाती है या ड्रॉपआउट दर बढ़ती है, तो उंगलियां सबसे पहले शिक्षक की ओर उठती हैं। लेकिन क्या वाकई दोष केवल शिक्षकों का है? या फिर वह पूरा तंत्र जिम्मेदार है जिसने शिक्षक को राष्ट्र-निर्माता के बजाय मल्टी-डिपार्टमेंट कर्मचारी बना दिया है?
आज शिक्षक पर बढ़ता गैर-शैक्षणिक बोझ सिर्फ एक प्रशासनिक समस्या नहीं बल्कि शिक्षा व्यवस्था की गहराई में समाया संकट है, जो अब आवारा कुत्तों की निगरानी जैसे आदेशों तक जा पहुंचा है।
शिक्षक: पढ़ाने से अधिक ‘अन्य कार्यों’ में व्यस्त
शिक्षक का मूल कार्य बच्चों को शिक्षित करना, कक्षा को संभालना, पाठ्यक्रम को सरल बनाकर समझाना और भविष्य के नागरिक तैयार करना है। लेकिन वास्तविकता इससे बिल्कुल अलग तस्वीर पेश करती है।
ग्रामीण हो या शहरी—दोनों क्षेत्रों में शिक्षक पर बढ़ता गैर-शैक्षणिक बोझ इस कदर हावी है कि पढ़ाने के लिए निर्धारित समय का बड़ा हिस्सा अन्य कार्यों में खर्च हो जाता है।
आज शिक्षक, राज्य सरकारों के आदेशों के चलते, निम्न कार्यों में उलझ जाते हैं—
मतदाता सूची संशोधन,जनगणना कार्य,सर्वेक्षण,मध्याह्न भोजन मॉनिटरिंग
,स्वास्थ्य विभाग के टीकाकरण अभियान,सामाजिक योजनाओं का प्रचार,घर-घर सर्वे,विद्यालय भवनों की रिपोर्टिंग,और अब आवारा कुत्तों की गिनती व निगरानी जैसा विवादित कार्य,इस तरह हर महीने नया निर्देश और हर सप्ताह नई मीटिंग के कारण शिक्षण कार्य हाशिए पर चला जाता है।
शिक्षा स्तर क्यों गिर रहा है? विशेषज्ञों की 3 बड़ी वजहें
क्या केवल शिक्षक को दोष देना उचित है?
सरकारी स्कूलों के स्तर में गिरावट के लिए सिर्फ शिक्षक को जिम्मेदार ठहराना न तो न्यायसंगत है और न ही व्यवहारिक।
यह एक सिस्टम फेल्योर है—
खराब प्लानिंग,प्रशासनिक कार्यों का अंबार,विभागीय तालमेल की कमी,राजनीतिक हस्तक्षेप,और असंतुलित कार्य-विभाजन
जब तक शिक्षक को सिर्फ पढ़ाने का समय और वातावरण नहीं मिलेगा, तब तक किसी भी शिक्षा नीति का परिणाम अपेक्षित नहीं हो सकता।
समाधान क्या है?
शिक्षक पर बढ़ता गैर-शैक्षणिक बोझ न केवल शिक्षकों को दबा रहा है बल्कि शिक्षा के पूरे ढांचे को कमजोर बना रहा है।
अगर हम सच में सरकारी स्कूलों का स्तर सुधारना चाहते हैं, तो सबसे पहले शिक्षक को उसका मूल अधिकार—‘शिक्षण’—वापस देना होगा।
शिक्षक राष्ट्र-निर्माता हैं, न कि सर्वे कर्मचारी, गिनती कर्मचारी और न ही हर विभाग के लिए उपलब्ध संसाधन।
जब शिक्षक पढ़ाएंगे, तभी देश पढ़ेगा।
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