आधुनिकता के दौर में गुम हो गए फाल्‍गुन गीत, अब ग्रामीण डीजे संग मना रहे होली

विलुप्त हो गई होली की लोक परंपराएं, आधुनिकता हावी

महराजगंज(राष्ट्र की परम्परा)। एकता और भाई-चारा के प्रतीक होली के त्योहार में अब पौराणिक प्रथाएं पूरी तरह गौण हो चुकी हैं। इसके स्वरूप और मायने भी बदल चुके हैं। वसंत पंचमी के दिन से शुरू होकर लगातार 40 दिन तक चलने वाला लोक पर्व का त्योहार होली अब महज कुछ घंटों में सिमट कर रह गया है। बुजुर्गों का कहना है कि आधुनिकता की दौड़ में जहां तमाम लोक परंपराओं, विधाओं और संस्कृतियों का लोप हुआ है वहीं पूर्वी भारत का सबसे बड़ा त्योहार होली भी अब सिमटता जा रहा है। वर्तमान में होली का ट्रेंड तेजी से बदल रहा है। आधुनिकता के दौर में अब फाल्‍गुन गीत नहीं सुनाई देते हैं। युवाओं की होली डीजे की धुन पर लोग मना रहे होली।
करीब दो दशक पूर्व तक होली के करीब आते ही ग्रामीण क्षेत्रों में फाल्गुन की आहट सुनाई देने लगती थी। ढोलक की थाप और मंजीरों पर फगुआ गीतों से सजने वाली महफिलें जमने लगती थीं। इस दौरान गायन मंडली के साथ-साथ ग्रामीण बच्चों में उत्साह और आनंद का वातावरण देखने को मिलता था। वर्तमान भाग-दौड़ भरी जिंदगी और आधुनिकता की अंधी दौर में परंपराएं पीछे छूटती जा रही हैं और होली का रंग बेरंग होता जा रहा है। ऐसे में अब तो होली के दिन भी होली के गीत सुनने को नहीं मिलते और आनंद-उत्साह लोगों में नहीं दिखता। गांवों का शहरीकरण होता जा रहा है और इन सबके बीच समाज को एक दूसरे से जोड़ने वाली परंपराएं भी दम तोड़ती जा रही हैं। उस समय लोगों में आपसी प्रेम और सौहार्द काफी गहरा रहता था और जब लोग होली के गीत में सारे रंजो गम भूल जाते थे। शुभकामनाएं देने के लिए लोग एक दूसरे के घरों को जाते थे। अब इंटरनेट मीडिया से ही शुभकामनाएं देकर परंपरा को निभाने का कोरम पूरा कर लेते हैं। होली के परंपरागत गीतों की जगह भोजपुरी के अश्लील व फूहड़ गीतों ने ले लिया है। गांवों के बड़े बुजुर्गों की मानें तो परंपराओं को बनाए रखने से ही आपसी सौहार्द व भाई-चारा कायम रह सकता है। फाग गायन से जुड़े लोगों का मानना है कि मनोरंजन के अधिक संसाधन विकसित होने एवं युवा पीढ़ी का फाग गायन के प्रति रुचि न लेने के कारण फाग की दुर्दशा हो रही है। युवा पीढ़ी फाग गायन के लिए आगे नहीं आ रहे हैं। स्थिति यह है कि अब होली पर फाग की जगह फिल्मी गीतों की गूंज डीजे के माध्यम से सुनाई देती है। आज भी हम अपनी विरासती सभ्यता को संभाले तो होली का खोया स्वरूप पाया जा सकता है।

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