गोंदिया-वैश्विक स्तरपर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस के बीच दिनांक 19 नवंबर 2025 को चल रही गलबहियां पूरी दुनियाँ ने देखी अमेरिकी राष्ट्रपति ने सऊदी को प्रमुख गैर-नाटो सहयोगी बता दिया है और एफ़-35, परमाणु डील समेत कई महान समझौते किए हैं मध्य -पूर्व की राजनीति में खलबली मचा देने वाले इन दो देशों ने 1945 में भी एक महान समझौता किया था,जब एक युद्धपोत पर राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट और आधुनिक सऊदी किंग अब्दुलअजीज इब्न सऊद की मुलाकात हुई थी,इसी मुलाकात के बाद क्विंसी समझौते की नींव रखी गई थी।वैश्विक राजनीति सदियों से राष्ट्रीय स्वार्थ और रणनीतिक लाभ के सिद्धांत पर संचालित होती रही है।चाहे वह साम्राज्य वाद के दौर कीविस्तारवादी नीतियाँ हों, शीतयुद्ध काल के दो ध्रुवीय गठबंधन, या 21वीं सदी की आर्थिक-रणनीतिक कूटनीति, हर युग में महाशक्तियों ने अपनी प्राथमिकताओं को सर्वोपरि रखा। अभी हाल ही में एक दिन पूर्व डोनाल्ड ट्रंप और मोहम्मद बिन सलमान (एमबीएस) के बीच हुए ऐतिहासिक समझौतों निवेश के वायदों को भी इसी रूप में देखा जा सकता है। इन दोनों के बीच एक दिन पूरा वाइट हाउसमें जो हुआ वह सिद्धांत को पुष्ट करती हैं कि राजनीति में स्थायी कुछ नहीं होता, केवल राष्ट्रीय हित स्थायी होते हैं।यह लेख इन दोनों नेताओं के हालिया व्हाइट हाउस संवाद,उससे जुड़े रणनीतिक व्यापारिक और सैन्य समझौतों तथा वैश्विक शक्ति समीकरणों पर पड़े प्रभाव का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है।मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र यह मानता हूं कि राजनीति में स्वार्थ की अवधारणा नई नहीं है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों केयथार्थवादी सिद्धांत के अनुसार, हर देश का सर्वोच्च उद्देश्य अपनी सुरक्षा, शक्ति और हितों की रक्षा करना होता है। यह सिद्धांत बताता है कि कोई भी राष्ट्र,चाहे वह अमेरिका हो, सऊदी अरब हो या भारत,वैश्विक मंच पर उन्हीं निर्णयों को प्राथमिकता देता है,जिनसे उसका सामरिक, आर्थिक या राजनीतिक हित सुरक्षित रहेडोनाल्ड ट्रंप का अमेरिका फर्स्ट और एमबीएस का विज़न 2030 इसी स्वार्थ- प्रधान रणनीति के दो उदाहरण हैं। दोनों नेता इस धारणा पर चलते हैं कि बड़े फैसलेभावनाओं या सामूहिक नैतिकता के आधार पर नहीं,बल्कि कच्ची वास्तविकताओं, पैसा, सुरक्षा, निवेश, तेल, हथियार और वैश्विक प्रभाव के आधार पर लिए जाते हैं।
साथियों बात अगर हम ट्रंप और एमबीएस:-दो आक्रामक नेताओं की समान नीति-शैली कोसमझने की करें तो डोनाल्ड ट्रंप वैश्विक राजनीति में अपनी लेन-देन आधारित कूटनीति (ट्रांसक्शनल डिप्लोमासी) के लिए जाने जाते हैं। उनके शासनकाल में वैश्विक समझौते लाभ-हानि के कठोर आकलन पर आधारित थे। वे अंतरराष्ट्रीय गठबंधनों पर पुनर्विचार करने,नाटो देशों से अधिक धन मांगने,चीन पर टैरिफ लगाने और पुराने समझौतों को रद्द करने में संकोच नहीं करते थे।इसी प्रकार मोहम्मद बिनसलमान अपने देश को आधुनिक आर्थिक महाशक्ति बनाने के लिए उग्र सुधारवादी नीति अपनाते हैं। सऊदी की तेल-निर्भर अर्थव्यवस्था को विविध बनाने, बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश लाने और मध्य-पूर्व की शक्ति-संतुलन में वर्चस्व बनाए रखने के लिए वे साहसिक कदम उठाते रहे हैं। उनके शासनकाल में सऊदी अरब ने क्षेत्रीय राजनीति में आक्रामक सैन्य और आर्थिक हस्तक्षेपों के माध्यम से खुद को एक निर्णायक शक्ति के रूप में स्थापित किया है।दोनों नेताओं में तीन महत्वपूर्ण समानताएँदिखाई देती हैं(1)राष्ट्र प्रथम का सिद्धांत (2) आक्रामक कूटनीति(3)बड़े आर्थिक और रक्षा सौदों पर जोर
साथियों बात अगर हम ट्रंप- एमबीएस व्हाइट हाउस बैठक: भू-राजनीतिक हलचल का केंद्र इसको समझने की करें तो, 2018 के बाद पहली बार एमबीएस का अमेरिका आगमन और व्हाइट हाउस में ट्रंप द्वारा किया गया ऐतिहासिक स्वागत वैश्विक मीडिया का केंद्र बन गया यह केवल एक कूटनीतिक मुलाकात नहीं थी, बल्कि वैश्विक शक्ति समीकरणों को पुनर्परिभाषित करने वाला क्षण था।इस मुलाकात के कई अर्थ थे- (1)सऊदी अरब और अमेरिका के रिश्तों में आई ठंडक अब समाप्त हो रही है।(2) बाइडेन प्रशासन के तहत मौजूद तनाव और अविश्वास अब इतिहास बनता दिख रहा है।(3) मध्य-पूर्व में अमेरिका अपनी प्रासंगिकता पुनः स्थापित करने की कोशिश कर रहा है।(4) एमबीएस की अंतरराष्ट्रीय छवि, जो खशोगी प्रकरण से धूमिल हुई थी, ट्रंप ने उसे पुनः वैधता प्रदान कर दी।ट्रंप के इस कदम को विश्लेषक व्यवहारिक कूटनीति कहते हैं,जहाँ मानवीय अधिकारों का मुद्दा पीछे छूट जाता है और व्यापार, हथियार सौदे तथा रणनीतिक प्रभाव प्राथमिकता बन जाते हैं।
साथियों बातें कर हम सऊदी को मेजर नॉन-नाटो एली का दर्जा और अभूतपूर्व रक्षा सौदे इसको समझने की करें तो इस बैठक का सबसे बड़ा और ऐतिहासिक निर्णय था सऊदी अरब को मेजर नॉन-नाटो एली का दर्जा देना।यह दर्जा सामान्यत: उन देशों को मिलता है जो अमेरिका के दीर्घकालिक रक्षा-सहयोगी होते हैं। इससे सऊदी को अमेरिकी तकनीक, हथियार, रक्षा सहयोग, खुफिया सूचना और सुरक्षा साझेदारी के विशेष अधिकार प्राप्त होंगे।यह कदम मध्य-पूर्व में शक्ति संतुलन को पूरी तरह बदल देगा।इसके साथ ही दो बड़े रक्षा समझौते घोषित हुए(1) 48 एफ़-35 स्टील्थ फाइटर जेट की बिक्री-एफ़ -35 दुनिया का सबसे खतरनाक और अत्याधुनिक स्टील्थ विमान है।सऊदी के लिए यह एक “गेम-चेंजर” सिद्ध होगा।यह इज़रायल, ईरान और तुर्किये जैसे देशों के सैन्य समीकरणों पर गहरा असर डालेगा। (2) 300 अब्राम्स टैंक की बिक्री-अब्राम्स एम 1ए 2 टैंक दुनिया की सबसे उन्नत स्थलीय युद्ध मशीनों में गिना जाता है।इससे सऊदी की थलसेना का सामरिक शक्ति- संतुलन कई गुना बढ़ जाएगा।इन दोनों सौदों के पीछे ट्रंप का साफ संदेश है-बिजनेस इज़ बिजनेस, और अमेरिका का हित सर्वोपरि है।
साथियों बात अगर हम सऊदी का अमेरिका में ऐतिहासिक निवेश,एक ट्रिलियन डॉलर का लक्ष्य इसको समझने की करें तो,एमबीएस ने अमेरिका में सऊदी अरब के निवेश को बढ़ाकर 1 ट्रिलियन डॉलर करने की घोषणा करके वैश्विकआर्थिक जगत में हलचल मचा दी। यह रकम पहले से घोषित 600 अरब डॉलर के निवेश से कहीं अधिक है। उन्होंने अमेरिका को दुनिया का सबसे आकर्षक निवेश गंतव्य बताया, जो स्पष्ट करता है कि सऊदी आर्थिक रूप से अमेरिका पर भरोसा बढ़ा रहा है। यह निवेश केवल आर्थिक नहीं, बल्कि 3 बड़े रणनीतिक उद्देश्यों को साधता है (1) अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सऊदी की निर्णायक भागीदारी(2)द्विपक्षीय संबंधों को वित्तीय आधार पर मजबूती (3) ट्रंप प्रशासन को समर्थन और सुरक्षा गारंटी प्राप्त करना,एफ़ -35 और 300 अब्राम्स टैंकों के अतिरिक्त सऊदी द्वारा 88 लाख करोड़ (अरबों डॉलर) की डील अमेरिकी उद्योग के लिए बड़ी आर्थिक संजीवनी है।ट्रंप के लिए यह बैठक केवल एक कूटनीतिक सफलता नहीं, बल्कि आर्थिक उपलब्धि भी थी,जो एनपीएस (नेशनल परोसपेरिटी सम्मिट) और आगामी चुनावों में उनकी छवि मजबूत करेगी।
साथियों बात अगर हम जमाल खशोगी हत्या मामला: ट्रंप की ‘क्लीन चिट’ और विश्व राजनीति में नैतिकता बनाम हितों का संघर्ष इसको समझने की करें तो,2018 में तुर्किये में पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या ने विश्व समुदाय में सऊदी अरब की छवि को गंभीर क्षति पहुंचाई थी। सीआईए ने अपने निष्कर्षों में स्पष्ट रूप से कहा था कि इस हत्या के पीछे सऊदी शासन और एमबीएस की मंजूरी का संदेह है।बाइडेन प्रशासन इसी आधार पर एमबीएस से दूरी बनाए हुए था।परन्तु ट्रंप ने इस बैठक में एमबीएस को क्लीन चिट प्रदान करते हुए कहा कि उन्हें इस मामले में कोई जानकारी नहीं है।यह बयानरणनीतिक और आर्थिक हितों के अनुसार था, राजनीतिक नैतिकता के नहीं।यह कदम यह सिद्ध करता है कि (1) राजनीति में मानवीय अधिकारों से बड़ा राष्ट्रीय हित होता है (2) हथियार, निवेश और भू- रणनीतिक सहयोग नैतिकता से अधिक शक्तिशाली हैं (3) अमेरिका -सऊदी संबंध व्यवहारिकता पर आधारित हैं, न कि आदर्शवाद पर ट्रंप का यह निर्णय आलोचकों की दृष्टि में विवादास्पद है, परन्तु समर्थकों के अनुसार यह “राष्ट्रहित आधारित वास्तविक कूटनीति” है।
साथियों बात अगर हम इसके अंतरराष्ट्रीय प्रभाव:-यहसाझेदारी वैश्विक भू-राजनीति को कैसे बदलेगी? इसको समझने की करें तो ट्रंप,एमबीएस बैठक का वैश्विक परिदृश्य पर प्रभाव अत्यन्त व्यापक है,(1)मध्य-पूर्व का शक्ति-संतुलन बदल जाएगा-एफ़ -35 और अब्राम्स टैंक सऊदी को क्षेत्रीय सुपर- पावर बना देंगे।ईरान के लिए यह गंभीर चुनौती होगी।(2)चीन और रूस पर अप्रत्यक्ष दबाव बढ़ेगा- सऊदी का अमेरिका की ओर झुकाव ऊर्जा और निवेश उद्योग में दोनों देशों के लिए झटका है (3) इज़रायल -सऊदी संबंधों में नई संभावनाएँ-अमेरिका की मध्यस्थता से अब्राहम समझौते 2.0′ की राह खुल सकती है।(4)भारत सहित एशिया में कच्चे तेल की राजनीति प्रभावित होगी-सऊदी,अमेरिका गठजोड़ तेल मूल्यों और ऊर्जा आपूर्ति पर असर डालेगा। (5) अमेरिका मध्य-पूर्व में अपनी सैन्यमौजूदगी दोबारा मजबूत करेगा,यह चीन की बेल्ट एंड रोड रणनीति पर भी प्रभाव डालेगा।
अतः अगर हम उपयोग पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि स्वार्थ, रणनीति और शक्ति,21वीं सदी की नई कूटनीति,ट्रंप और मोहम्मद बिन सलमान की मुलाकात केवल एक राजनयिक घटना नहीं थी, बल्कि 21वीं सदी की नई भू-राजनीति का स्पष्ट संदेश थी,राष्ट्रहित सर्वोपरि है।इस साझेदारी में अर्थव्यवस्था है,हथियार हैं,निवेश है,रणनीतिक दबाव है,क्षेत्रीय वर्चस्व है,और सबसे महत्वपूर्ण,एक ऐसा गठबंधन है जो आने वाले दशक में विश्व की शक्ति-संरचना को नया स्वरूप दे सकता है।नैतिकता मानवाधिकार, लोकतंत्र जैसे आदर्शों का स्थान यथार्थवादी शक्ति- राजनीति ने फिर से ले लिया है। स्वार्थ-प्रधान राजनीति आज भी वही है,केवल उसके स्वरूप और साधन बदल गए हैं।डोनाल्ड ट्रंप और एमबीएस इस नई विश्व-व्यवस्था के प्रतिनिधि हैं, जहाँ कूटनीति अब केवल संवाद नहीं, बल्कि शक्ति, धन और राष्ट्रीय हितों की प्रतिस्पर्धा है।
-संकलनकर्ता लेखक – एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया
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