भारत के इतिहास में 24 दिसंबर केवल एक तारीख नहीं, बल्कि स्मृतियों, विचारों और कृतित्व को नमन करने का दिन है। इस दिन कला, साहित्य, सिनेमा, विज्ञान और सामाजिक क्रांति के ऐसे-ऐसे महान व्यक्तित्वों ने संसार को अलविदा कहा, जिनकी छाप आज भी भारत की आत्मा में जीवित है। आइए, 24 दिसंबर को हुए इन ऐतिहासिक निधनों पर विस्तार से प्रकाश डालते हैं।
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दीनानाथ भार्गव (निधन : 24 दिसंबर 2016)
दीनानाथ भार्गव भारत के आधुनिक कला आंदोलन के महत्वपूर्ण स्तंभ थे। उनका जन्म मध्य प्रदेश में हुआ था। वे विश्वप्रसिद्ध चित्रकार नंदलाल बोस के शिष्य रहे और शांतिनिकेतन कला परंपरा से गहराई से जुड़े थे। दीनानाथ भार्गव ने भारतीय लोक जीवन, प्रकृति और सांस्कृतिक चेतना को अपनी कूची के माध्यम से जीवंत किया।
उन्होंने केवल चित्र बनाए ही नहीं, बल्कि भारतीय कला शिक्षा को नई दिशा दी। उनके चित्रों में भारतीयता की सादगी, रंगों की गरिमा और भावनाओं की गहराई साफ झलकती है। देश-विदेश की कई प्रदर्शनियों में उनकी कला को सम्मान मिला। भारतीय चित्रकला को वैश्विक पहचान दिलाने में उनका योगदान अमूल्य रहा।
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पी. भानुमति (निधन : 24 दिसंबर 2005)
पी. भानुमति भारतीय सिनेमा की बहुआयामी प्रतिभा थीं। उनका जन्म आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में हुआ। वे न केवल एक सफल अभिनेत्री रहीं, बल्कि फ़िल्म निर्देशक, संगीत निर्देशक, गायिका, निर्माता, उपन्यासकार और गीतकार के रूप में भी उन्होंने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई।
तमिल और तेलुगु सिनेमा में उनके अभिनय ने महिला पात्रों को नई गरिमा दी। उस दौर में जब महिलाओं के लिए सीमित अवसर थे, भानुमति ने सृजनात्मक स्वतंत्रता की मिसाल कायम की। साहित्य और संगीत के क्षेत्र में भी उनका योगदान उल्लेखनीय रहा। भारतीय सिनेमा को संवेदनशील और सशक्त महिला दृष्टिकोण देने में उनकी भूमिका ऐतिहासिक है।
जैनेन्द्र कुमार (निधन : 24 दिसंबर 1988)
जैनेन्द्र कुमार हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक कथाकार और उपन्यासकार थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में हुआ था। वे प्रेमचंद के बाद हिंदी कथा साहित्य में मनोवैज्ञानिक गहराई लाने वाले प्रमुख लेखकों में गिने जाते हैं।
उनकी रचनाओं में व्यक्ति के भीतर चल रहे द्वंद्व, नैतिक संघर्ष और आत्मसंघर्ष का सूक्ष्म चित्रण मिलता है। सुनीता, त्यागपत्र और कल्याणी जैसे उपन्यासों ने हिंदी साहित्य को वैचारिक मजबूती दी। जैनेन्द्र कुमार ने साहित्य को आत्मचिंतन का माध्यम बनाया और समाज को भीतर से देखने की दृष्टि प्रदान की।
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एम. जी. रामचन्द्रन (निधन : 24 दिसंबर 1987)
एम. जी. रामचन्द्रन, जिन्हें पूरे देश में एमजीआर के नाम से जाना जाता है, तमिलनाडु के सबसे लोकप्रिय नेता और अभिनेता थे। उनका जन्म श्रीलंका में हुआ था, लेकिन कर्मभूमि तमिलनाडु रही।
सिनेमा में उन्होंने सामाजिक न्याय, गरीबों और शोषितों की आवाज़ को परदे पर उतारा। राजनीति में प्रवेश के बाद वे तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने और कल्याणकारी योजनाओं से आम जनता के जीवन में बदलाव लाए। मुफ्त भोजन योजना और सामाजिक सुधारों के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है। एमजीआर जननेता की परिभाषा बन गए।
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सतीश चंद्र दासगुप्ता (निधन : 24 दिसंबर 1979)
सतीश चंद्र दासगुप्ता एक भारतीय राष्ट्रवादी, वैज्ञानिक और आविष्कारक थे। उनका जन्म पश्चिम बंगाल में हुआ था। वे स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े रहे और साथ ही विज्ञान व तकनीकी नवाचारों में भी सक्रिय भूमिका निभाई।
उन्होंने विज्ञान को राष्ट्रनिर्माण का आधार माना और स्वदेशी तकनीक के विकास पर बल दिया। दासगुप्ता का मानना था कि आत्मनिर्भर भारत की नींव वैज्ञानिक सोच से ही रखी जा सकती है। स्वतंत्रता संग्राम और वैज्ञानिक चेतना के संगम के रूप में उनका योगदान उल्लेखनीय है।
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ई. वी. रामास्वामी नायकर ‘पेरियार’ (निधन : 24 दिसंबर 1973)
ई. वी. रामास्वामी नायकर, जिन्हें पेरियार के नाम से जाना जाता है, तमिलनाडु के वेल्लोर जिले के महान समाज सुधारक थे। वे आत्मसम्मान आंदोलन और द्रविड़ आंदोलन के प्रणेता रहे।
उन्होंने जातिवाद, अंधविश्वास और सामाजिक असमानता के खिलाफ आजीवन संघर्ष किया। शिक्षा, तर्क और समानता को समाज की नींव बनाने का उनका विचार आज भी प्रासंगिक है। पेरियार ने दक्षिण भारत की सामाजिक और राजनीतिक चेतना को नई दिशा दी और हाशिए पर खड़े लोगों को आवाज़ दी।
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