“बिहार की सियासत में मचा महाभारत: दलबदल, वायरल वीडियो और ‘नचनिया’ बयान से गरमाया माहौल — लोकतंत्र की मर्यादा बनाम सत्ता की महत्वाकांक्षा”

चुनावी मौसम में बिहार की राजनीति बन गई है रंगमंच — जहां गीत, ग्लैमर, आरोप, वीडियो और बयानों का नाटक चल रहा है; जनता सवाल कर रही है — मुद्दे कहाँ हैं?

बिहार की सियासत इन दिनों मानो एक राजनीतिक रणभूमि बन गई है। चुनाव नजदीक आते ही यहां हर दल, हर नेता और हर समर्थक एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप की बौछार कर रहे हैं। कोई राजद (RJD) के नेताओं को तोड़ने का दावा कर रहा है तो कोई NDA के नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कर लेने की कहानी सुना रहा है। इस राजनीतिक बिसात पर हर मोहरा चाल चल रहा है — लेकिन सवाल यह है कि जनता के असली मुद्दे इस शोर में कहां खो गए हैं?
दल बदल का खेल – ‘कुर्सी’ के लिए कोई भी किनारा नहीं बिहार की राजनीति में दल बदल कोई नई बात नहीं, लेकिन इस बार का दौर कुछ ज्यादा ही उग्र दिख रहा है।

ये भी पढ़ें – 🌿 त्योहार की थकान मिटाने जाएं इन सुकून भरी जगहों पर – रिलैक्स करें मन, तन और आत्मा

“जो कल विरोध में था, आज स्वागत में है।”
यह वाक्य वर्तमान राजनीतिक माहौल की सटीक झलक पेश करता है।
राजद के वरिष्ठ नेताओं को तोड़ने के दावे हो रहे हैं, वहीं जेडीयू और बीजेपी में भी अंदरूनी खींचतान की चर्चा है। कई नेताओं का कहना है कि यह “वोट बैंक की मजबूरी नहीं, अवसर की राजनीति” है। बिहार का राजनीतिक इतिहास गवाह है कि यहां विचारधारा से ज़्यादा सत्ता की सीढ़ियाँ मायने रखती हैं।
वायरल वीडियो की सियासत – कैमरे से ज्यादा असर सोशल मीडिया का
अब बिहार की राजनीति सिर्फ मंचों और सभाओं में नहीं, बल्कि मोबाइल स्क्रीन पर भी लड़ी जा रही है। किसी का पुराना बयान वायरल किया जा रहा है, तो किसी का वीडियो एडिट कर ‘सच्चाई’ बताई जा रही है।
कभी कहा जाता था कि राजनीति विचारों की लड़ाई है, अब यह वीडियो और वायरलिटी की जंग बन चुकी है।
एक ओर कुछ नेता खुद को “बिहार के सुरक्षित हाथ” बताने में जुटे हैं, तो दूसरी ओर विरोधी दल इन दावों को खारिज करने के लिए सोशल मीडिया का जमकर उपयोग कर रहे हैं। “वीडियो वॉर” अब प्रचार का सबसे शक्तिशाली हथियार बन गया है।

ये भी पढ़ें – स्वच्छता अभियान का लग रहा पलीता, सरकार हो रही बदनाम करोड़ों खर्चने के बाद नहीं बदल रही गांवों की सूरत

गीत, ग्लैमर और गुस्सा – अभिनेत्री और गायकों की एंट्री से चुनावी रंगत
इस बार बिहार के चुनावों में गायकों, अभिनेत्रियों और फिल्मी चेहरों की भागीदारी ने माहौल को और चटपटा बना दिया है।
किसी पार्टी ने लोकप्रिय लोकगायक को टिकट दिया है तो कोई अभिनेत्री को मंच पर बुलाकर रैली की शान बढ़ा रहा है।
लेकिन इन सबके बीच, कुछ नेताओं की अमर्यादित टिप्पणियाँ भी चर्चा में हैं। एक सांसद द्वारा प्रतिद्वंद्वी को “नचनिया” कहकर संबोधित करने से मामला और भड़क गया।
राजनीति में शब्दों की मर्यादा जब टूटती है, तो लोकतंत्र की आत्मा आहत होती है।
यह दृश्य बताता है कि चुनावी रणनीति अब सम्मान और मुद्दों की बजाय व्यक्तिगत हमलों और मनोरंजन पर केंद्रित होती जा रही है।
“तीन पहले से हैं” – रिश्तेदारी वाली राजनीति का नया ट्रेंड
सोशल मीडिया पर अब यह भी देखने को मिल रहा है कि कोई किसी अभिनेत्री को ‘रिश्तेदार’ बता रहा है, कोई किसी अभिनेता पर टिप्पणी कर रहा है।
राजनीतिक विमर्श की जगह अब मजाक, मीम और मज़ेदार पोस्टों ने ले ली है।
राजनीतिक दलों की मीडिया टीमों ने अब यह मान लिया है कि लोग विचार से नहीं, मनोरंजन से आकर्षित होते हैं।
यह लोकतंत्र के लिए चिंताजनक संकेत है — जब जनता के सामने मुद्दे हों तो वे मनोरंजन में खो जाएं, तब असली सवालों का जवाब कौन देगा?जनता के असली मुद्दे कहाँ हैं?
इस पूरे शोरगुल में न तो बेरोज़गारी पर बात हो रही है, न शिक्षा या स्वास्थ्य पर।
बिहार आज भी विकास, रोजगार और पलायन जैसी पुरानी समस्याओं से जूझ रहा है।
लेकिन चुनावी मंचों पर इन मुद्दों की बजाय जुमले, जोश और जश्न का माहौल है।
एक राजनीतिक पर्यवेक्षक ने सही कहा —
“बिहार की राजनीति में मुद्दे नहीं, मिज़ाज बदलते हैं — और वही परिणाम तय करते हैं।”
जनता क्या चाहती है – मनोरंजन नहीं, भरोसे की राजनीति
बिहार के मतदाता अब पहले जैसे नहीं रहे।
वे देख रहे हैं कि कौन नेता सिर्फ बयान दे रहा है और कौन असल में विकास की बात कर रहा है।
अब यह दौर ‘फोटोशूट राजनीति’ का नहीं, बल्कि परिणाम दिखाने वाली राजनीति का होना चाहिए।
वक्त आ गया है जब जनता को यह तय करना होगा कि वह लोकतंत्र को तमाशा बनने देगी या उसे जिम्मेदारी से सजाएगी।
राजनीति में अगर मर्यादा और मूल्य लौटे, तभी बिहार की सियासत फिर से ‘बुद्ध भूमि’ कहलाने योग्य बनेगी।
लोकतंत्र की असली परीक्षा
आज बिहार की राजनीति संवेदनाओं से नहीं, सनसनी से संचालित हो रही है।
दल बदल से लेकर वायरल वीडियो तक, नचनिया बयानों से लेकर रिश्तेदारी के दावों तक — हर घटना बताती है कि सत्ता पाने की होड़ में नेताओं ने जनता के असली सरोकारों को किनारे रख दिया है।
लोकतंत्र तभी जीवित रहेगा जब जनता सवाल पूछेगी, जब मतदाता मनोरंजन नहीं, मूल्य आधारित राजनीति चुनेगा।
बिहार की धरती ने हमेशा बदलाव की शुरुआत की है — उम्मीद है, इस बार भी वही होगा।

Editor CP pandey

Recent Posts

बूढ़ी मांगे नाती , तरुनी मांगे बेटा , बिटिया जे मांगेली भाई _ भतीजा

संतति संरक्षण संवर्धन के तपपर्व सूर्यषष्ठी पर आस्था का अलौकिक माहौल नदी जलाशय पोखरा घाटो…

3 minutes ago

सूर्य उपासना में डूबे विधायक जय मंगल कन्नौजिया — परिवार संग निभाई लोक आस्था की परम्परा

श्रद्धा, अनुशासन और लोक संस्कृति से सराबोर रहा छठ महापर्व का दृश्य महराजगंज (राष्ट्र की…

15 minutes ago

छठ पूजा जाने के दौरान हादसा: कांग्रेस नेता की पत्नी बाइक से गिरकर हुई गंभीर रूप से घायल

बरहज/देवरिया (राष्ट्र की परम्परा)। छठ पूजा मनाने के लिए मायके जा रही कांग्रेस नेता की…

2 hours ago

छठ पूजा 2025: बलिया में आस्था का सागर उमड़ा, घाटों पर गूंजे छठ मइया के जयकारे

सिकंदरपुर/बलिया (राष्ट्र की परम्परा)। बलिया जिले के ग्रामीण अंचलों में लोक आस्था के महापर्व छठ…

2 hours ago