भारत के इतिहास में कुछ ऐसे व्यक्तित्व हैं, जिनकी दूरदृष्टि और दृढ़ निश्चय ने राष्ट्र की नियति को नई दिशा दी। सरदार वल्लभभाई पटेल उनमें से एक थेl एक ऐसा नाम, जिसने स्वतंत्र भारत की एकता की नींव रखी और जिसे आने वाली पीढ़ियाँ सदैव “लौह पुरुष” के रूप में याद करेंगी।
आज जब देश क्षेत्रीयता, जातीयता और संकीर्ण स्वार्थों की राजनीति से जूझ रहा है, तब पटेल का आदर्श और भी प्रासंगिक हो उठता है। उन्होंने उस दौर में, जब नवजात भारत विभाजन के घावों से कराह रहा था, अपने अदम्य साहस और प्रशासनिक कुशलता से सैकड़ों रियासतों को एक सूत्र में पिरो दिया। यह कार्य असंभव प्रतीत हो रहा था l परन्तु पटेल ने उसे न केवल संभव किया, बल्कि उसे भारतीय इतिहास की सबसे महान राजनीतिक उपलब्धियों में बदल दिया।
राजाओं और नवाबों के अहंकार, अंग्रेजों की शेष चालों और विभाजन की पीड़ा के बीच पटेल ने ‘राष्ट्र पहले’ की भावना को सर्वोपरि रखा। हैदराबाद, जूनागढ़ और कश्मीर जैसे जटिल मसलों का समाधान जिस दृढ़ता और सूझबूझ से उन्होंने किया, वह उन्हें ‘भारत का बिस्मार्क’ कहे जाने योग्य बनाता है। उनके निर्णयों में न कठोरता का घमंड था, न समझौते की कमजोरी, केवल देशहित की स्पष्ट दृष्टि थी।
गुजरात के खेड़ा और बारडोली आंदोलनों में किसानों के संघर्ष का नेतृत्व करते हुए पटेल ने न्याय की लड़ाई को जनांदोलन का रूप दिया। यही नेतृत्व क्षमता आगे चलकर राष्ट्रीय एकता का आधार बनी। वे नारे नहीं देते थे, कार्य करते थे। गांधी के सिद्धांतों पर चलते हुए भी वे निर्णयों में व्यवहारिकता के पक्षधर थे, यही संतुलन उन्हें विशिष्ट बनाता है।
आज जब दुनिया में सीमाएँ केवल नक्शों तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि विचारों और मतभेदों में भी खिंच गई हैं, तब पटेल का जीवन संदेश देता है कि सच्ची राष्ट्रभक्ति केवल शब्दों में नहीं, कर्म में निहित होती है। देश की अखंडता, प्रशासनिक दृढ़ता और विकास के लिए समान सोच — यही पटेल का दर्शन था।
भारत यदि आज एक अखंड और शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में खड़ा है, तो उसमें सरदार पटेल की लौह इच्छाशक्ति का अमूल्य योगदान है। उनके आदर्श केवल इतिहास की किताबों तक सीमित न रहें, बल्कि शासन, राजनीति और नागरिक आचरण में मार्गदर्शक बनें — यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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