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बढ़ती उपेक्षा का कारण बदलता परिवार: आधुनिक समाज की सबसे बड़ी चुनौती

सोमनाथ मिश्र की रिपोर्ट

आज के तेजी से बदलते सामाजिक परिवेश में एक सच्चाई सामने आ रही है कि “बढ़ती उपेक्षा का कारण बदलता परिवार” केवल एक विचार नहीं बल्कि एक गंभीर सामाजिक संकट बन चुका है। जहाँ कभी संयुक्त परिवार भारतीय संस्कृति की रीढ़ माने जाते थे, वहीं अब एकल परिवारों का बढ़ता चलन, व्यस्त जीवनशैली और बढ़ता व्यक्तिवाद उम्रदराज लोगों, बच्चों और सामाजिक संबंधों के बीच दूरियाँ पैदा कर रहा है।

बदलती पारिवारिक संरचना और उसका प्रभाव

बढ़ती उपेक्षा का कारण बदलता परिवार इसलिए भी माना जा रहा है क्योंकि पहले की तरह अब घरों में दादा-दादी, नाना-नानी और अन्य बुज़ुर्गों की उपस्थिति कम होती जा रही है। युवा पीढ़ी नौकरी, शिक्षा और बेहतर जीवन की तलाश में बड़े शहरों की ओर जा रही है। इस दौरान माता-पिता पीछे छूट जाते हैं और परिवार का वो भावनात्मक ताना-बाना कमजोर हो जाता है, जो भारतीय समाज की पहचान रहा है।

एक समय था जब परिवार केवल खून का रिश्ता नहीं बल्कि एक सामाजिक संस्था हुआ करता था। लेकिन अब बदलती जीवनशैली के कारण परिवार सिमटकर केवल माता-पिता और बच्चों तक सीमित हो गया है। इसी कारण बढ़ती उपेक्षा का कारण बदलता परिवार एक स्पष्ट सच्चाई बनकर उभर रहा है।

व्यस्त जीवनशैली और तकनीकी निर्भरता

आज का युवा सुबह से रात तक काम की दौड़ में लगा रहता है। मोबाइल, लैपटॉप और सोशल मीडिया के बढ़ते प्रयोग ने संबंधों की गर्माहट को धीरे-धीरे खत्म कर दिया है। बच्चे मोबाइल और इंटरनेट की दुनिया में इतने खो गए हैं कि घर के बुज़ुर्गों की बातें उन्हें अब बोझ सी लगने लगी हैं।

इस प्रकार, बढ़ती उपेक्षा का कारण बदलता परिवार केवल पारिवारिक ढाँचे में बदलाव नहीं बल्कि तकनीक के अत्यधिक प्रयोग से भी जुड़ा हुआ है। अब लोग एक ही घर में रहकर भी आपस में बात नहीं करते, जिससे भावनात्मक दूरी पैदा हो रही है।

पीढ़ियों के बीच बढ़ता अंतर और बदलती संवेदनाएँ

पहले बुज़ुर्गों का अनुभव परिवार के लिए मार्गदर्शक हुआ करता था, परंतु अब युवा यह मानने लगे हैं कि पुरानी सोच उनके आधुनिक जीवन में बाधा बनती है। इस मानसिकता के कारण पीढ़ियों के बीच संवाद कमजोर हुआ है।

यहीं से बढ़ती उपेक्षा का कारण बदलता परिवार और अधिक स्पष्ट हो जाता है। संवेदनाएँ धीमी हो रही हैं, रिश्ते औपचारिक बनते जा रहे हैं और साथ रहने का अर्थ केवल एक छत के नीचे रहना भर रह गया है।

सामुदायिक स्तर पर भी दिख रहा असर

केवल परिवार ही नहीं, बल्कि समाज के स्तर पर भी बदलाव का गहरा प्रभाव पड़ रहा है। पड़ोसी, रिश्तेदार और मित्रता के संबंध अब पहले की तरह मजबूत नहीं रहे। यह सामाजिक अलगाव भी बढ़ती उपेक्षा का कारण बदलता परिवार के दायरे को और अधिक बढ़ा रहा है।

समाज में वृद्धाश्रमों की संख्या बढ़ना, अकेलेपन से जूझते बुज़ुर्गों की बढ़ती संख्या और मानसिक तनाव के मामले इस बात का सीधा प्रमाण हैं कि पारिवारिक मूल्यों में गिरावट आई है।

समस्या का समाधान: कैसे कम हो बढ़ती उपेक्षा

बढ़ती उपेक्षा का कारण बदलता परिवार जरूर है, लेकिन इसका समाधान भी संभव है। इसके लिए हमें कई स्तरों पर काम करना होगा।

  1. अंतरपीढ़ीगत संवाद को बढ़ावा देना होगा
    बच्चों और बुज़ुर्गों के बीच नियमित संवाद जरूरी है। स्कूलों और कॉलेजों में ऐसे कार्यक्रम होने चाहिए जो बच्चों को अपने परिवार, खासकर बुज़ुर्गों से जुड़ने के लिए प्रेरित करें।
  2. सामुदायिक जागरूकता अभियान
    समाज में ऐसे अभियान चलाए जाएँ जो परिवार के महत्व को फिर से स्थापित करने का काम करें। मीडिया की भूमिका इसमें सबसे महत्वपूर्ण हो सकती है।
  3. सरकारी और सामाजिक नीतियाँ
    बुज़ुर्गों के लिए मजबूत सुरक्षा, पेंशन, स्वास्थ्य सुविधा और सामाजिक सम्मान की नीतियों को और प्रभावी बनाने की जरूरत है।
  4. परिवार के साथ समय बिताने की आदत
    सप्ताह में कम से कम एक दिन “फैमिली डे” के रूप में मनाया जाए ताकि सभी सदस्य एक साथ समय बिता सकें।

बदलते समय में रिश्तों की नई परिभाषा
अगर हम समय रहते नहीं चेते, तो आने वाले वर्षों में बढ़ती उपेक्षा का कारण बदलता परिवार और भयावह रूप ले सकता है। इसलिए जरूरी है कि हम आधुनिकता को अपनाने के साथ-साथ अपनी जड़ों को भी संभाले रखें।

सच्चाई यही है कि परिवार केवल एक व्यवस्था नहीं, बल्कि भावनाओं, संस्कारों और संस्कृतियों का संगम है। उसे टूटने देना, समाज के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न लगाने के समान है।

rkpnews@somnath

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